मानसरोवर भाग 1 | MANSAROVAR PART 1
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
350
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
प्रेमचंद - Premchand
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनभल मेरे मन में आएगा, उसी दिन विष खाकर मर जाऊँगी। भगवान् करे, तुम
दूधों नहाओं, पूतों फल्रों! मरते दम तक यही असीस मेरे रोएँ-रोएँ से निकलती
रहेगी और अगर लड़के भी अपने बाप के हैं। तो मरते दम तक तुम्हारा पोस
मानेंगे।
यह कहकर पन्ना रोती हुई वहाँ से चली गई। रग्घू वहीं मूर्ति की तरह बैठा रहा।
आसमान की ओर टकटकी लगी थी और आँखों से ऑसू बह रहे थे।
5
पन्ना की बातें सुनकर मुलिया समझ गई कि अपने पौबारह हैं। चटपट उठी, घर
में झाड़ू लगाई, चूल्हा जलाया और कुएँ से पानी लाने चली। उसकी टेक पूरी हो
गई थी।
गाँव में स्त्रियों के दो दल होते हैं-एक बहुओं का, दूसरा सासों का! बहुएँ सलाह
और सहानुभूति के लिए अपने दल में जाती हैं, सासें अपने में। दोनों की पंचायतें
अलग होती हैं। मुलिया को कुएँ पर दो-तीन बहुएँ मित्र गई। एक से पूछा-आज
तो तुम्हारी बुढ़िया बहुत रो-धो रही थी।
मुलिया ने विजय के गर्व से कहा-इतने दिनों से घर की मालकिन बनी हुई है,
राज-पाट छोड़ते किसे अच्छा लगता है? बहन, मैं उनका बुरा नहीं चाहती: लेकिन
एक आदमी की कमाई में कहॉ तक बरकत होगी। मेरे भी तो यही खाने-पीने,
पहनने-ओढ़ने के दिन हैं। अभी उनके पीछे मरो, फिर बाल-बच्चे हो जाएँ, उनके
पीछे मरो। सारी जिन्दगी रोते ही कट जाएगी।
एक बहू-बुढ़िया यही चाहती है कि यह सब जन्म-भर लौंडी बनी रहें। मोटा-झोटा
खाएं और पड़ी रहें।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...