रोबोट और तितिली | ROBOT AUR TITLI

ROBOT AUR TITLI  by पुस्तक समूह - Pustak Samuhविआउते जिलिन्स्काइते - VITOUTE JILINSKYTE

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कोई भी उत्तर न पाकर हिमिका नीचे उतर आई और फिर से सड़क पर चलने लगी। निरुद्देश्य और एकाकी जीवन से दुखी हिमिका दर-दर भटकने लगी। अन्त में वह एक बड़े बगीचे में आ पहुंची और गर्मी से मुरकाए हुए डेजी के पौधे के करीब बैठ गई। बह डेज़ी की टहनी से चिषटी और फूट-फूटकर रोने लगी। आंसू बह निकले और तब उसने महसूस किया कि वह पिघल रही है। उसका स्वरूप पारदर्शी जल की एक बड़ी-सी बूंद में बदल रहा है। अब पता चला कि बादल बाबा ने उसे क्यों चेतावनी दी थी: देखो, आज के बाद फिर कभी मत रोना। “ धन्यवाद दोस्त! ' हिमिका को पिघलते समय डेज़ी की आवाज़ सुताई दी। “ तुमने मुझे नया जीवन दिया है, जब मैं प्यास से मर रहा था।...




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