एक गधे की वापसी | EK GADHE KI VAPSI

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कृष्ण चंदर - Krishna Chandar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बोली, 'तुम समझदार गधे मालूम होते हो। अच्छा, यह बताओ कि अगर मैं अपनी बच्ची की शादी तुम से करने पर तैयार हो जाऊं, तो तुम मेरी बच्ची को कहां रखोगे और क्या खिलाओगे ?' 'रखने को कोई विशेष स्थान तो नहीं है, घीसू घसियारे के यहां। वह मुझे रात को घर के बाहर जामुन के पेड़ से बांध देता है, बल्कि प्राय: मुझे खुला ही छोड़ देता है, ताकि मैं इधरठधर घास चर कर अपना पेट भर लूं।' 'तो वह तुम्हें घास नहीं डालता है क्या ?' 'नहीं।' “तो इसका मतलब है कि अगर मेरी बच्ची की तुम्हारे साथ शादी हो जाए, तो उसे भी घास नहीं मिलेगी ?' 'प्रेम में घास क्या करेगी ? इक़्बाल ने कहा है 'बेख़तर कूद पड़ा आतिशेनमरूद में इश्क़ ', (बेख़तर-बेझिझक, निडरता से/ आतिशेनमरूद -नमरूद बादशाह द्वारा दहकाई गई भयंकर आग) इश्क़, बड़ी बी, इश्क़ तो इश्क़ है और घासघास है। मुझे देखो, इश्क़ भी करता हूं और घास भी खाता हूं। और कभीकभी जब घास नहीं मिलती, तो केवल इश्क़ खाता हूं। क़व्वाली गाता हूं 'यह इश्क्रइश्क़ है इश्क्द्श्क्र', बड़ी बी, तुम मेरी मानो, अपनी बेटी को मेरे हवाले कर दो। घास का क्या है ? यह दुनिया बहुत बड़ी है। कहीं न कहीं घास मिल ही जाएगी ।' “जी नहीं, ' बड़ी बी कठोरता से बोली, 'मैं अपनी मासूम बच्ची की तुम से हरगिज़्हरगिज्ञ शादी नहीं करूंगी। जबकि न बाप का पता, न मां का। न धर्म ठीक, न जाति दुरुस्त । जिसका कोई ठौरठिकाना नहीं, रहने के लिए कोई स्थान नहीं, खाने के लिए घास नहीं। ऊपर से पढ़ेलिखे आदमियों की तरह बात करते हो।' मैंने गर्वपूर्ण शब्दों में कहा, 'हां, मैं अख़बार पढ़ सकता हूं। पर इसमें क्या बुराई है?' 'यह तो बहुत बुरी बात है,' बड़ी बी जल कर बोली, आजकल हिंदुस्तान में जितने पढ़ेलिखे गधे हैं, सब क्लर्की करते हैं या फ़ाक़ा करते हैं। तुम्हीं बताओ, तुमने आज तक किसी पढ़ेलिखे ठीक आदमी को लखपति होते देखा है? न भैया, मैं तो अपनी बेटी की किसी लखपति से शादी करूंगी। चाहे वह बिल्कुल अनपढ़, घामड़ गधा ही क्‍यों न हो।' मुझे उस गधी की मूर्खतापूर्ण बातों पर बड़ा क्रोध आया। किंतु, चूंकि मामला इश्क़ का था, इसलिए मैं ज़हर का घूंट पीते हुए उसे फिर से समझाने की कोशिश करने लगा। “देखो अम्मा, आजकल नया ज़माना है। इस ज़माने में धर्म, जातिपांति को कोई नहीं पूछता। हम सब हिंदुस्तानी हैं, हम सब गधे हैं बस, इतना ही सोच लेना काफ़ी है। यह प्रश्न राष्ट्रीय एकता का है।' 'अमीर और गरीब में राष्ट्रीय एकता कैसी ? तुम्हारी समस्याएं अलग, हमारी समस्याएं अलग। हमारे स्वार्थ अलग, तुम्हारे स्वार्थ अलग। हमारा जीवन स्तर अलग, तुम्हारा जीवन स्तर अलग। और फिर हम तो हिंदुस्तानी भी नहीं। हमारी तो नस्ल भी तुम से अलग है। मेरी बच्ची के दादा, ख़ुदा उन्हें करवटकरवट जन्नत बख़्शे, विशुद्ध अंगरेज़ी गधे थे और मेरी मां फ्रांसीसी नस्ल की थी और तुम बड़े बेसुरे, बेकार, काले हिंदुस्तानी गधे हो और चले हो मेरी बेटी से इश्क़ जताने। ख़बरदार ! जो मेरी बेटी की तरफ आंख उठा कर भी देखा। दोनों आंखें फोड़ डालूंगी।' यह कह कर बड़ी बी ने मेरी तरफ़ पीठ करके इतने ज़ोर की दुलत्ती झाड़ी कि मैं घबरा कर वहां से भाग खड़ा हुआ और डिसूज़ा की झोंपड़ी के सामने आ कर दम लिया और उस दिन से संकल्प किया कि अब प्रेम नहीं करूंगा, क्योंकि प्रेम करने के लिए केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है कि आदमी कवि स्वभाव रखता हो। प्रेम करने के लिए यह भी बहुत आवश्यक है कि आदमी को दो वक़्त की घास भी प्राप्य हो, वरना कोई औरत घास नहीं डालेगी। इसलिए मैंने उस परियों सी सुंदर गधी से प्रेम करने का विचार त्याग दिया और अपने जीवन को केवल घास लादने पर लगा दिया, कि जो हर गधे का भाग्य है। दिन बड़े आराम से गुज़र रहे थे। घास लादना, घास खाना और अपने खूँटे पर जाके सो जाना। ज़िंदगी इससे सादा और क्या हो सकती है और इस दुनिया में अधिकांश लोग इससे अधिक चाहते भी क्या हैं ? इस निर्दयी आसमान की चाल को क्या कहिए कि मेरी कुछ दिनों की यह शांति भी उसे सहन न हुई। पहली मुसीबत यह आई कि




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