तमाशे में डूबा हुआ देश | TAMASHE MEIN DOOBA HUA DESH

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असग़र वजाहत - Asagar Wajahat

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/17/2016 ये तो हुई आदमी के गुम हो जाने की बात। अब सुनें कुत्ते के पिल्‍लों की गुमशुदगी की दास्तान। दरअसल जो कुत्ते के पिल्‍ले खोए है उन्हें कुत्ते का पिल्‍ला कहने से भी डर रहा हूँ। उसकी वजह है। आपको मालूम ही है कि कुछ साल पहले अमेरिका के राष्ट्रपति जब अपने दल बल के साथ दिल्‍ली आए थे तो उनके साथ कुत्ते भी थे। उनके कुत्तों की प्रतिष्ठा, गरिमा, पद आदि के बारे में पता न होने के कारण एक भारतीय अधिकारी ने उन्हें कुत्ता कह दिया था। इसी बात पर उस अधिकारी के खिलाफ कुत्तों की मानहानि का दावा कर दिया गया था। अदालत में अमेरिकी सरकार के प्रतिनिधि ने कहा था, ये कुत्ते नहीं हैं - इनके नाम और पद हैं। एक का नाम जैक जॉनी है और वह मेजर के पद पर है। दूसरे का नाम स्टीव शॉ है जो कैप्टेन है। तीसरी कुतिया का नाम लिंडा जॉन्स है जिसने अभी अभी ज्वाइन किया है और वह सेकेंड लेफ्टीनेंट है। अदालत ने इन अधिकारियों की मानहानि करने के सिलसिले में संबंधित अधिकारी को सजा सुनाई थी और यह आदेश दिया था कि भविष्य में इन कुत्तों को कुत्ता नहीं कहा जाएगा, यही वजह रही कि राजधानी के समाचारपत्र बड़े आदर और सम्मान से कुत्तों के नाम और पद छापते रहे। आप हम सब जानते हैं कि वैसे भी हमारे समाचारपत्र कुत्तों का कितना ध्यान रखते हैं क्योंकि उससे लाभ हानि जुड़ी होती है। हुआ यह कि एक रात दो बजे मंत्रीपुत्र के घर से थाने फोन आया। थाने की नींद उड़ गई। मंत्रीपुत्र ने डॉटा और कहा कि तुम सोते रहते हो और चोर चोरी करते रहते हैं। तुम्हें पता है बेबी रतन और बेबी गौरी का अपहरण हो गया है। थाने में तुरंत कार्यवाही की बात उठी। पर सब जानते थे कि मंत्रीपुत्र अभी तक अविवाहित है और उसने कसम खाई हुई है कि जब तक स्वयं मंत्री नहीं बन जाएगा शादी नहीं करेगा। ऐसी हालत में बेबी रतन और बेबी गौरी कहाँ से आ गए। इस सवाल का जवाब कोई न दे सका तो हवालात में बंद एक अपराधी ने दिया। उसने बताया, बेबी रतन और बेबी गौरी मैडम लूसी और सर जॉनसन की औलादँ हैं जिन्हें मंत्रीपुत्र यूएस. से खरीद कर लाए थे और अनजान तथा अनाड़ी इन्हें कुत्ते के पिल्‍ले कह उठे थे जिस पर उसी समय उनकी जुबान खिंचवा ली गई थी। रतन और गौरी के अपहरण की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। स्थानीय पत्रकारों के बाद टी.वी. चैनल वाले धमक पड़े और पूरा थाना कैमरों, लाइटों, कटरों से भर गया। कुछ टी.वी.वाले मंत्रीपुत्र की कोठी पर पहुँच गए। सबसे पहले यह 'ब्रेकिंग न्‍्यूज' 'जल्वा चैनल' ने दी। उसके बाद यह ब्रेकिंग न्यूज़ 'समकुल चैनल' पर शुरू हुई। उसके बाद तो घमासान शुरू हो गया। हर चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज स्टोरी चलने लगी, रतन और गौरी के 'स्टिल्स' और 'फुटेज' की माँग इतनी बढ़ गई कि प्रोडक्शन हाउसाोंवाले पागल हो गए। चैनलों में तूफान मच गया। एक रिपोर्टर की नौकरी इसलिए चली गई कि वह रतन की फोटो नहीं ला सका। दूसरे चैनल में किसी का प्रोमोशन हो गया कि वह मंत्रीपुत्र की 'बाइट' ले आया। एक पत्रकार को पीटा गया, क्योंकि उसने मंत्रीपुत्र के कुत्ताघर, जिसे अंग्रेजी में सब 'केनलल' कहते थे, में घुसने की कोशिश की थी। दो पुलिसवाले सस्पेंड हो गए क्योंकि चार घंटे हो गए थे और उन्होंने रतन और गौरी का पता नहीं लगाया था। डी.एम. का ट्रांसफर होते होते बचा और एस.पी. को 'कारण बताओ' नोटिस दे दिया गया। चैनलवालों ने पुलिस को पटाने का काम शुरू किया। वे चाहते थे कि इस पूरे ऑपरेशन में जिसे पुलिस ने 'आपरेशन ड्रथ' का नाम दिया था, वे लगातार पुलिस के साथ रहें। 'जल्वा' चैनलवालों ने पुलिस को यह समझा कर पटाया कि 'आपरेशन ड्रथ' के बाद चैनल पुलिस का इंटरव्यू दिखाएगा। यह बात 'चैनल फोर फाइव सिक्‍्स'वाले को पता चल गई। उन्होंने पुलिस को पच्चीस हजार नकद देने का वायदा किया। कहा यह कि 'जल्वा'वालों की जगह 47




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