बारिश की एक सांझ | BARISH KI EK SAANJH
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
223 KB
कुल पष्ठ :
25
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ढीम और बुढ़िया
दो ढीम थें ढीम जानते हो न-खेत की मिट्टी के ढेलें वे अपने खेत में खेल रहे थें
पहले एक ढीम लुढ़कता फिर दूसरा ढीम उसे लुढ़क कर पकड़तां
पर ये खेल वे तब खेलते जब उन्हें कोई देख न रहा हों कोई चिड़िया भी नहीं देख
रही हों कोई चींटी भी नहीं देख रही हों कोई झाड़ी भी नहीं देख रही हों कोई आदमी
भी नहीं देख रहा हों जैसे ही कोई उनकी तरफ देखता-वे लुढ़कना बंद कर देते और
पड़े हुए दिखाई देतें
तभी एक भैंस चराने वाली बुढ़िया उधर आईं उसने अपनी भैंसे तो पास के पोखर में
छोड़ दी थीं अब वह यहाँ खेत की मेड़ पर बबूल की छाया में बैठने आई थीं ढ़ीमों ने
देखा कि बुढ़िया देख रही हैं उन्होंने तुरंत खेलना बंद कर दिया और पड़ गएं पर
बुढ़िया को जाने क्या सूझी वह बबूल की छाया में उसी जगह आकर बैठी जहाँ ये दो
ढीम पड़े थें
ढीमों की खेलने की इच्छा अभी भरी नहीं थीं पर उन्हें डर लग रहा था कि बुढ़िया
देख लेगीं तब ढीमों ने सोचा-चलो बुढ़िया से बात की जाएं दोनों ढीमों ने एक साथ
बुढ़िया से पूछा-बूढ़ी अम्माँ तू कै बरस की है ? बुढ़िया ने समझा ढ़ीम उसकी पढ़ाई
लिखाई के बारे में पूछ रहे हैं सोचकर बोली-भैया मैं तो ख बरस की हूँ
ढीमों ने कहा-नहीं री हम पूछ रहे हैं तू कितने बरस की है ?
बुढ़िया फिर सोचकर बोली-पता नहीं रे जाने सात बरस की हूँ कि जाने सतरह बरस
की हैं
हू
और बुढ़िया को वे दिन याद आए जब वह सात बरस की थी और जब वह सतरह
बरस की थीं
ढीमों ने पूछा-बूढ़ी अम्माँ तू कब तक भैंस चराएगी ?
बुढ़िया बोली-जब तक जीऊँँगीं
ढीमों ने पूछा-तू कब तक जीएगी ?
बुढ़िया बोली-मेरा वश चले तो मरूँ ही नहीं पर सोचती हूँ एक सौ चार बरस तो
जीऊँगी हीं
बुढ़िया ने कहा-तुमने बहुत पूछ लियां अब मैं पूछूँगी-तुम बताओ तुम कितने बरस
जीओगे ?
ढीमों ने कहा हम तो मौसम के अनुसार मरते जीते रहते हैं मर जाते हैं फिर जी जाते
हैँ
बुढ़िया ने पूछा-फिर भी कब तक जीओगे ?
ढीमों ने बताया-अभी तो हम आज शाम तक ही जीएँगें
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