नए साल की शुभकामनायें | NAYE SAL KI SHUBHKAMNAYEN

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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना - Sarveshwar Dayal Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/23/2016 ठंडी हवा-सी चलती है, अक्सर एक दृष्टि कनटोप-सा लगाती है, अक्सर एक बात पर्वत-सी खड़ी होती है, अक्सर एक ख़ामोशी मुझे कपड़े पहनाती है । मैं जहाँ होता हूँ वहाँ से चल पड़ता हूँ अक्सर एक व्यथा यात्रा बन जाती है | शीर्ष पर जाएँ 2/2




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