स्कूल से मुक्ति | FREE FROM SCHOOL

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राहुल अल्वारेज़ - RAHUL ALVAREZ

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर में भला अशोक तक यह संदेश पहुंचाने के सिवाय भला और कर भी क्‍या सकता था। अशोक के साथ काम करते समय मैंने जूलियट को दिए अपने वायदे को पूरा करने की सोची। पहली समस्या थी कि टेंक खोजने की। जब मैंने अशोक की दुकान में खोज शुरू की तो मुझे वो टेंक तमाम बड़ी मछली-टंकियों के नीचे पड़ा मिला। वो अभी भी साबुत था यह देखकर मुझे प्रसन्नता हुई। हमने टूटे कांच का माप लिया और फिर उस कांच को दुकान स जाकर खरीदा। टंकी दुरुस्त करके मैं पीटर के दफ्तर में गया और उससे शाम को आफिस से घर जाते हुए मछली-टंकी साथ ले जाने को कहा। अगली दिन शाम पीटर टेंक को घर ले गया। कुछ दिनों बाद में साइकिल पर उनके घर मछली-टंकी को फिट करने गया। वहां जाकर मुझे पता चला कि टंकी के पेंदे में रखने के लिए जूलियट पर पास कोई सामग्री नहीं थी। जो थोड़ी बहुत बजरी थी वो अपर्याप्त थी। मैंने इन जरूरी चीजों के बारे में जूलियट को बताया और उसने उन चीजों के अलावा सजावटी सामान को खरीदने की मुझे पूरी छूट दी। मैं अगली बार उनके घर पर कई किलो कंकड, पम्प, प्लास्टिक के पौधे, मछलियों की दवाईयां, फिल्टर, लचीले पाईप, कुछ रेग्युलेटर, टी-ज्वांड_ और मछली का जाल लेकर पहुंचा। जूलियट के मछली-टंकी में रखने के लिए मैं दो अलग-अलग प्रकार के सीप और खिलोने भी ले गया। सबसे पहले मैंने कंकड़ों को धोया और फिर उसके नीचे फिल्टर फिट किया। फिर मैंने टंकी के पूरे पेंदे के ऊपर कंकड़ बिछाए और उन पर सीप और खिलौने सजाए। फिर नल और फिल्टर को हवा के पम्प के साथ जोड़ा। काम के दौरान जूलियट की दोनों छोटी बेटियां एंजिलएन और मिरियम मुझे लगातार ध्यान से देखती रहीं। वो लगातार टिप्पणियां देती रहीं और कभी-कभी मदद भी करती रहीं। दो घंटे में पूरा काम पूरा हुआ। अब टंकी में पानी के पौधे और मछलियां डालना ही बचा था। मछलीघर के लिए मछलियां चुनने का काम मुझे नहीं सौंपा गया था। जूलियट ने कहा था कि वो कैंडोलिम से मछलियां खरीद कर लाएगी। उसे लगा कि केंडोलिम में पानो के पौधे नहीं मिलेंगे इसलिए उसने मुझे उन्हें पीटर के साथ भेजने को कहा। जूलियट ने मुझ से बिल बनाकर उसे पीटर के हाथ भेजने को कहा। अगले दो दिनों में मैंने यह किया। एक हफ्ते बाद मुझे अपने पिताजी का एक पत्र लेकर पीटर और जूली के घर जाना पड़ा। मैं जूली द्वारा लाई मछलियां देखने के लिए उत्सुक था। क्या वो मेरे बनाए घर में खुश थीं? भेंट स्वरूप मैं अपने बाग




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