वोल्गा से गंगा | VOLGA SE GANGA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
386
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निशा ११
दिखलाई । आज उन्हें एक छोड़ दोको देना पड़ा । अभी शिकारोंके
लौटनेमे दो महीने हैं, इस बीचमें देखें और कितनोको देना होता है।
तीन भालू और एक भेड़ियेमे तो उनका, जाड़ा नही कट सकता |
बच्चे बड़े ख़श थे, वेचारे ख़ाली पेट लेटे हुए थे। माने पहले
उन्हें मेड़ियेकी कल्ेजी काट-काटकर दी | लड़के हृपू-हप् कर खा रहे
थे। चमड़ेकों विना नुक़ृतान पहुँचाये उतारा। चमड़ेका वड़ा काम
है| मास काटकर जन्र दिया जाने लगा, वहुत भूखोने तो कुछ कच्चा
ही खाया, फिर सबने आगके अंगारपर भून-मूनकर खाना शुरू किया।
अपने भूने टुकड़ोंमसे एक गाल कायनेके लिए माकी सभी ख़शामद-
कर रहे थे | माने कह-- वस, आज पेटमर खाझ्मों, कल्से इतना
; नहीं मिलेगा ।”
मा उठकर शुहाके एक कोनेमे गई, वहाँसें चमड़ेकी फूली हुई
मिल्लीको लाकर कहां - 'बस, यही मधु-सुरा है, आज पीयो, नाचो,
क्रीड़ा करो |”?
छोटोंको भिल्लीसे घेंट-घूट करके पीनेक्ों मिला, बड़ोको ज़्यादा-
ज़्यादा। नशा चढ़ आया। आँखें लाल हो आई' | हँसीका फिर
ठह्दाका शुरू हुआ | किसीने गाना गाया । बड़े पुरुषने लकड़ीसे लकड़ी
बजानी शुरू की, लोग नाचने लगे | आज वस्तुतः आनन्दकी रात थी |
माका राज्य था, किन्तु वह अन्याय और असमानताका राज्य नहीं
था । बूढ़ी दादी ओर बड़े पुरुषको छोड़ बाक़ी सभी माकी सन््ताने थीं;
और वूढीके ही बड़ा पुरुष तथा मा वेटा-वेटी ये, इसलिए वहाँ मेरा-
तेराका प्रश्न नहीं हो सकता था| वस्थुतः मेरा-तेराका युग आतेमे
अभी देर थी। किन्तु हाँ, माक्ों सभी पुरुषोंपर समान और प्रथम
अधिकार था। चौबीस पुत्र और पतिके चले जानेसे उसे अफछोठ न
हुआ हो यह वात नहीं, किन्तु उस समयका जीवन श्रतीतसे अधिक
वत्तमान-विद्यमानकी फिक्र करता था। माके दो पति भोजूद थे, तीसरा
-चौदह साज्ला तैयार हो रहा था। उसके राज्यके रहते-रहते बच्चोंमेंसे
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