कलाकार | KALAKAAR

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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मन्नू भण्डारी - MANNU BHANDARI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही के हैं, रात नौ बजे लौटो, दस बजे लौटो, कोई बंधन नहीं । हम लोग तो दस के बाद बत्ती भी नहीं जला सकते ।”' “लौट आई अरुणा दी? आज सवेरे से ही वे बड़ी परेशान थी। फ्‌लिया दाई का बच्चा बड़ा बीमार था, दोपहर से वे उसी के यहाँ बैठी थी। पता नहीं, क्या हुआ बेचारे का?”' शीला ने ठंडी साँस भरते हुए कहा। तू बड़ी भक्‍त है अरुणा दी की!” “उनके जैसे गुण अपना ले तो तेरी भी भक्त हो जाऊँगी।'' “मैं कहती हूँ, उन्हें यही सब करना है तो कही और रहें, छात्रावास में रहकर यह जो नवाबी चलाती हैं, सो तो हमसे बदश्ति नहीं होती सारी लड़कियाँ डरती हैं तो कुछ कहती नहीं, पर प्रिन्सिपल” और वार्डन* तक रोब खाती है इनका, तभी तो सब प्रकार की छूट दे रखी है। “तू भी जिस दिन हाड़ तोड़कर दूसरों के लिए यों मेहनत करने लग जायेगी न, उस दिन तेरा भी सब रोब खाने लगेंगे। पर तुम्हें तो सजने - सवरने से हि----------------+---ययणतणता-335 «पक से + नरम ++«++७++++-+75 3 सवार कण नस अ मनन क्‍क 9 9 + «3 के त करन «मम «मन डर जा सी मिलती, दूसरों के लिए क्या खाक काम करोगी।” अच्छा-- मल चल, अपना भाषण अपने पास रख।”” अरुणा अपने कमरे में घुसी तो बहुत ही धीरे से जिससे चित्रा की नींद हक हो। पर चित्रा जग ही रही थी। दोपहर से अरुणा बिना खाये-पिये बाहर थी, उसे आर आती भला? मेस* से उसका खाना लेकर उसे मेज पर इककर के रख दिया था। अरुणा के आते ही वह उठ-बैठी और पूछा,''बड़ी ही लग गयी, क्‍या हुआ रूनी! ' ठ-बैठी और पूछा,”'बड़ी दे “वह बच्चा नहीं बचा, चित्रा। किसी तरह उसे नहीं बचा सके ।'” और उसका रवर किसी है गहरे दुःख में डूब गया। हे अमल चित्रा ने माचिस लेकर लालटेन जलाया और स्टोव जलाने लगी, खाना *+वार्डन--छात्रावास की प्रधान मेंस छात्रावास का भोजन कक्ष




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