कजाकी | KAZAKI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
24
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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प्रेमचंद - Premchand
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आंखे दिखायीं, मगर यहां इतनी सब्र कहां!
अम्मा ने कहा-कह देना सब कुशल हे।
मैंने कहा-यह भी कह देना कि भैया ने बुलाया है। न जाओगे तो फिर तुमसे कभी
न बोलेंगे, हां!
बाबू जी खाना खाकर निकल आये थे। तौलिये से हाथ मुंह पोंछते हुए. बोले-और
यह भी कह देना कि साहब ने तुमको बहाल कर दिया है। जल्दी जाओ, नहीं तो कोई
दूसरा आदमी रख लिया जायेगा।
औरत ने अपना कपडा उठाया और चली गयी। अम्मां ने बहुत पुकारा, पर वह न रुकी।
शायद अम्मां जी उसे सीधा देना चाहती थीं।
अम्मां ने पूछा-सचमुच बहाल हो गया?
बाबू जी-और क्या झूठे ही बुला रहा हूं। मैंने तो पांचवें ही दिन बहाली की रिपोर्ट
'की थी।
अम्मा-यह तुमने अच्छा किया।
बाबू जी-उसकी बीमारी की यही दवा हे।
प्रात:ःकाल मैं उठा, तो क्या देखता हूं कि कजाकी लाठी टेकता हुआ चला आ रहा
है। वह बहुत दुबला हो गया
था, मालूम होता था, बूढ़ा हो
गया है। हरा-भरा पेड सूख
कर ठूठ हो गया था। मैं उसकी
ओर दौड़ और उसकी कमर
से चिपट गया। कजाकी ने मेरे
गाल चूमे और मुझे उठा कर
कंधो पर बैठालने की चेष्ठा
करने लगा; पर मैं न उठ
सका। तब वह जानवनों की
भांति भूमि पर हाथों और
घुटनों के बल खड़ा हो गया
और मैं उसकी पीछ पर सवार
होकर डाकखाने की ओर
15 / कजाकी
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