मानसरोवर भाग -2 | MANSAROVAR PART 2-MUNSHI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
411
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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प्रेमचंद - Premchand
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कर दिया करते हैं। तुम भी क्षमा कर देना। आकर मेरे शव को अपने हाथों से
नहलाना, अपने हाथों से सोहाग के सिंदूर लगाना, अपने हाथ से सोहाग की
चूड़ियाँ पहनाना, अपने हाथ से मेरे मुँह में गंगाजल डालना, दो-चार पग कंधा दे
देना, बस, मेरी आत्मा संतुष्ट हो जाएगी और तुम्हें आशीर्वाद देगी। मैं वचन देती
हूँ कि मालिक के दरबार में तुम्हारा यश गाऊँगी। कया यह भी महँगा सौदा है?
इतने-से शिष्टाचार से तुम अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हुए जाते हो।
आह! मुझे विश्वास होता कि तुम इतना शिष्टाचार करोगे, तो मैं कितनी खुशी से
मौत का स्वागत करती। लेकिन मैं तुम्हारे साथ अन्याय न करूँगी। तुम कितने
ही निष्ठुर हो, इतने निर्दयी नहीं हो सकते। मैं जानती हूँ; तुम यह समाचार पाते
ही आओगे और शायद एक क्षण के लिए मेरी शोक-मृत्यु पर तुम्हारी आँखें रो
पड़े। कहीं मैं अपने जीवन में वह शुभ अवसर देख सकती!
अच्छा, कया मैं एक प्रश्न पूछ सकती हूँ? नाराज न होना। क्या मेरी जगह किसी
और सोभाग्यवती ने ले ली है? अगर ऐसा है, तो बधाई! जरा उसका चित्र मेरे
पास भेज देना। मैं उसकी पूजा करूँगी, उसके चरणों पर शीश नवाऊँगी। मैं जिस
देवता को प्रसन्न न कर सकी, उसी देवता से उसने वरदान प्राप्त कर लिया।
ऐसी सौभागिनी के तो चरण धो-धो पीना चाहिए। मेरी हार्दिक इच्छा है कि तुम
उसके साथ सुखी रहो। यदि मैं उस देवी की कुछ सेवा कर सकती, अपरोक्ष न
सही, परोक्ष रूप से ही तुम्हारे कुछ काम आ सकती। अब मुझे केवल उसका शुभ
नाम और स्थान बता दो, मैं सिर के बल दौड़ी हुई उसके पास जाऊँगी और
कहूँगी - देवी, तुम्हारी लौंडी हूँ, इसलिए कि तुम मेरे स्वामी की प्रेमिका हो। मुझे
अपने चरणों में शरण दो। मैं तुम्हारे लिए फूलों की सेज बिछाऊँगी, तुम्हारी माँग
मोतियों से भरूँगी, तुम्हारी एड़ियों में महावर रचारऊँगी - यह मेरी जीवन की
साधना होगी! यह न समझना कि मैं जलूँगी या कुदहूँगी। जलन तब होती है, जब
कोई मुझे मेरी वस्तु छीन रहा हो। जिस वस्तु को अपना समझने का मुझे कभी
सौभाग्य न हुआ, उसके लिए मुझे जलन क्यों हो।
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