लाल बहादुर शास्त्री | LAL BAHADUR SHASTRI -NBT
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
29
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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राष्ट्रबंधु -RASHTRABANDHU
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शास्त्री जी ने शालीनता से उत्तर दिया, “भाई, हमारे संस्कार ही
ऐसे हैं।”
ऐसे अनेक प्रसंग हैं, जहाँ लोग उनको पहचान नहीं पाए। लोग
मंत्री के तामझाम से उनको अलंक़ृत करते थे लेकिन उनकी सादगी
प्रायः लोगों को भ्रम में डांल देती थी । एक बार ऐसा हुआ कि वे
गृहमंत्री के रूप में आगरा जा रहे थे। स्टेशन पर उनक स्वागत क
लिए काफी लोग ट्रेन के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। अधिकारी
फर्स्ट क्लास के डिब्बे में उनको लेने गए, लेकिन निर्धारित कार्यक्रम
के रहते हुए भी उनको न पाकर निराश हुए। उन्हें ऐसा लगा कि
मंत्री जी नहीं आए।
आम आदमी की छवि : ट्रेन के तीसरे दर्ज में सफर
जास्त्री जी ट्रेन के तीसरे दर्जे के डिब्बे से उतरे और गेट से बाहर
निकलने के लिए आगे बढ़े, तब एक कांस्टेबल ने उन्हें डॉट दिया
“बवडे रहो. पहले मंत्री जी निकल जाएँ तब बाकी लोग जाएगे।''
धास्त्री जी चपचाप एक और खड़े हो गा। अधिकारी निराश
होकर आपस में बातें करते हुए जब गेट के पास आए तो शास्त्री जी
को गेट के एक तरफ खड़े देखा | वे चकित रह गए, उनके मंत्री जी
यहाँ खडे थे। उन्होंने अपनी भूल सुधारने क॑ लिए बड़ी तत्परता से
उनका स्वागत किया तथा हार आदि पहनाए | इससे पहले कि शास्त्री
जी आगे बढ़ें, उन्होंने मुस्कराते हुए उस कांस्टेबल को रोका, वह सनन््न
था। काटों तो खुन नहीं, लेकिन शास्त्री जी ने हँसकर कहा, “मुझे
खुशी है कि तुमने अपनी इयूटी अच्छी तरह निभाई है।” ऐसा कहते
हुए वे आगे बढ़ गए। साधारण ओहदे का कांस्टेबल अपने मंत्री के
असाधारण और सौम्य व्यवहार को देखकर भोंचक था।
केवल बड़ों को ही नहीं छोटों को भी अपनी शालीनता और
सज्जनता से शास्त्री जी ने प्रभावित किया। वे सेवकों और
कर्मचारियों को कभी डॉटते-फटकारते नहीं थे बल्कि उन्हें उनकी
गलती का अहसास भर करा देते थे। वे किसी को दंडित नहीं
करते थे, प्रायः क्षमा करने का स्वभाव धा। इससे दोषी स्वयं को
सधारने का प्रयत्न करता था। वे स्वयं भी अपनी गलती को
सधारने की कोशिश करते थे |
एक बार शास्त्री जी सरकारी दौरे पर कार से जा रहे थे। उनकी
कार से कोई जानवर साधारण रूप से घायल हो गया। ऐसे अवसर
पर बडे लोग अकसर अपने को नहीं उलझाते, न ही पीड़ित के प्रति
सहानभृति दिखाते अथवा सहायता करते हैं । जास्त्री जी ने कानन क॑
अनसार कार वहीं छोड़ दी और पैदल चलकर पुलिस स्टेशन पहुंच ।
वहाँ के दीवान से मिले। दीवान ने रिपोर्ट नहीं लिखी और प्रतीक्षा
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