घाघ और भड्डरी | GHAGH AUR BHADDARI

GHAGH AUR BHADDARI by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaरमानाथ त्रिपाठी - Ramanath Tripathi

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रामनरेश त्रिपाठी - Ramnaresh Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८) सूकरवारी बादरी, रहे सनीचर दछाय। डंक कहे सुनु भट्टरी, बिन बरसे ना जाय ॥ मैने कभी इसे मिथ्या होते नहीं पाया । संगलवारी होय दिवारी। हँसें किसान रोचें बेपारी ॥ सं० १९८७ में मज्गल को दिवाली पड़ी थी। इस साल अन्न बहुत सस्ता है। किसान खाने-पीने से खुशहाल हैं। व्यापारियों को घाटा लग रहा है। वे सच-मुच रो रहे हैं। हज़ारों बर्षी में न जाने कितने बार मड्जल को दिवाली पड़ी होगी और किसान हँसे होंगे और व्यापारी रोये होंगे; अनुभव पर अनुभव हुए होंगे; तब यह कहावत बनी होगी । पृथ्वी के वायुमण्डल पर सूर्य-चन्द्रमा की तरह नक्ञत्रों ओर राशियों का भी प्रभाव पड़ता है। इस बात की जानकारी किसानों को भी है । उनकी कहावतों में इसका उल्लेख स्पष्ट मिलता है। पोष ओर माघ में जो वृष्टि का गर्भाधान होता है, उसके लक्षण कह्दावतों के अनुसार ये हैं :--वायु, वृष्टि, बिजली, ग्जन और बादल। गर्भा- धान के दिन ये लक्षण दिखाई पड़ें, तो वृष्टि विस्तार के साथ होगी। लोगों का विश्वास है कि उजाले पक्ष में गर्भाधान होने से सन्तान अर्थात्‌ वृष्टि निबल होती है। राशियाँ बारह और नक्षत्र सत्ताईस होते हैं। सूये को एक नक्षत्र से दूसरे नज्ञत्र तक पहुँचने में लगभग चोदह दिन लगते हैं । यहाँ दो सारिणियाँ दी जाती हैं । जिनसे राशियों ओर नज्ञत्रों के समय का पता चल जायगा । ये सारिणियाँ संबत्‌ १९८७ के अनुसार हैं :--




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