रसोई में चिड़ियाघर | RASOI MEIN CHIDIYAGHAR

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कृष्ण कुमार - Krishn Kumar

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बिस्कूट, वगैरह। मुझे लगा कि में चाचा की चाल कुछ-कुछ समझ रहा हं। इतनी देर में लल्‍ला को एक तरकीब सूझ्ञी। उसने अपनी आवाज दबा कर कहा- चाचा! में छिप कर देखंगा आप दरवाजे को बिल्कुल थोड़ा सा खोलिए, किसी को कुछ मालूम नहीं पड़ेगा। ' ओर यह कहकर लल्ला सचमुच दबे पांव रसोई के दरवाजे के पीछे जा कर खड़ा हो गया। चाचा अब कर ही कया सकते थे? उन्होंने आगे बढ़कर अलमारी की कूंडी धीरे से खींची ओर साथ में कहना शुरू किया - ये जानवर तुम लोगों से ज्यादा सतर्क हैं। मेरा ख्याल हे, वे तुम्हारी बातें सुन॒ कर ही बदल गये होंगे पर शायद... ' चाचा अपनी बात पूरी नहीं कर पाए। अलमारी का दरवाज़ा मुश्किल से एक-दो अंगुल खुला होगा कि नीचे के खाने से एक चुहिया निकल कर भागी। उसका निकलना था कि में ओर लल्ला चीखते हुई रसोई से भागे। चाचा हमें भागते देख कर हंसने लगे ओर बोले, “आज मालूम पड़ा कि मेरे जानवर तुम लोगों से कम डरपोक हें।'




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