सूरज का सातवां घोडा | SURAJ KA SATVAN GHODA

SURAJ KA SATVAN GHODA by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaधर्मवीर भारती - Dharmvir Bharati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/23/2016 अंत में रामधन से न देखा गया। उसने एक दिन कहा, 'बहूजी, आप काहे जान देय पर उतारू हौ। ऐसन तपिस्या तो गौरा माइयो नैं करिन होइहैं। बड़े-बड़े जोतसी का कहा कर लियो अब एक गरीब मनई का भी कहा कै लेव!' जमुना के पूछने पर उसने बताया, जिस घोड़े के माथे पर सफेद तिल्रक हो, उसके अगले बाएँ पैर की घिसी हुई नाल चंद्र-ग्रहण के समय अपने हाथ से निकाल कर उसकी अँगूठी बनवा कर पहन ले तो सभी कामनाएँ पूरी हो जाती हैं। लेकिन जमुना को यह स्वीकार नहीं हुआ क्योंकि पता नहीं चंद्र-ग्रहण कब पड़े। रामधन ने बताया कि चंद्र-ग्रहण दो-तीन दिन बाद ही है। लेकिन कठिनाई यह है कि नाल अभी नया लगवाया है, वह तीन दिन के अंदर कैसे घिसेगा और नया कुछ प्रभाव नहीं रखता। 'तो फिर क्‍या हो, रामधन? तुम्हीं कोई जुगत बताओ!' 'मालकिन, एक ही जुगत है।' 'क्या?' 'ताँगा रोज कम-से-कम बारह मील चले। लेकिन मालिक कहीं जाते नहीं। अकेले मुझे ताँगा ले नहीं जाने देंगे। आप चलें तो ठीक रहे।' 'लेकिन हम बारह मील कहाँ जाएँगे?' 'क्यों नहीं सरकार! आप सुबह जरा और जल्दी दो-ठढाई बजे निकल चलें! गंगापार पक्की सड़क है, बारह मील घुमा कर ठीक टाइम पर हाजिर कर दिया करूँगा। तीन दिन की ही तो बात है।' जमुना राजी हो गई और तीन दिन तक रोज ताँगा गंगापार चला जाया करता था। रामधन का अंदाज ठीक निकला और तीसरे दिन चंद्र-ग्रहण के समय नाल उतरवा कर अँगूठी बनवाई गई और अँगूठी का प्रताप देखिए कि जमींदार साहब के यहाँ नौबत बजने लगी और नर्स ने पूरे एक सौ रुपए की बख्शीश ली। जमींदार बेचारे वृद्ध हो चुके थे और उन्हें बहुत कष्ट था, वारिस भी हो चुका था अत: भगवान ने उन्हें अपने दरबार में बुला दिया। जमुना पति के बिछोह में धाड़ें मार-मार कर रोई, चूड़ी-कंगन फोड़ डाले, खाना-पीना छोड़ दिया। अंत में पड़ोसियों ने समझाया कि छोटा बच्चा है, उसका मुँह देखना चाहिए। जो होना था सो हो गया। काल बली है। उस पर किसका बस चलता है! पड़ोसियों के बहुत समझाने पर जमुना ने आँसू पोंछे। घर-बार सँभाला। इतनी बड़ी कोठी थी, अकेले रहना एक विधवा महिला के लिए अनुचित था, अत: उसने रामधन को एक कोठरी दी और पवित्रता से जीवन व्यतीत करने लगी। जमुना की कहानी खत्म हो चुकी थी। लेकिन हम लोगों की शंका थी कि माणिक मुल्ला को यह घिसी नाल कहाँ से मिली, उसकी तो अँगूठी बन चुकी थी। पूछने पर मालूम हुआ कि एक दिन कहीं रेल्न सफर में माणिक मुल्ल्रा को रामधन मिला। सिल्क का कुरता, पान का डब्बा, बड़े ठाठ थे उसके! माणिक मुल्ला को देखते ही उसने अपने भाग्योदय की सारी कथा सुनाई और कहा कि सचमुच घोड़े की नाल में बड़ी तासीर होती है। और फिर उसने एक नाल माणिक मुल्ला के पास भेज दी थी, यद्यपि उन्होंने उसकी अँगूठी न बनवा कर उसे हिफाजत से रख लिया। 1646




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