लाखी | LAAKHEE

LAAKHEE by अन्तोन चेखव -ANTON CHEKOVअरविन्द गुप्ता - Arvind Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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से तमाशों के बाद अजनबी ने सहसा अपना सिर पकड़ लिया, चेहरे पर, डर का भाव ले आया और चिल्लाया : “आग ! आग ! बचाओ !” इवान इवानिच दौड़ा-दौड़ा दर के पास गया, डोरी चोंच में पकड़ी और घंटी बजाने लगा। अजनबी बहुत खुश हुआ। उसने हंस की गर्दन सहलाई और बोला : 'शाबाश, इवान इवानिच ! अच्छा, तुम यह कल्पना करो कि तुम जौहरी हो और हीरे-जवाहरात बेचते हो। अब यह कल्पना करो कि तुम दुकान पर आए और देखा वहाँ चोर घुस आए हैं। ऐसी हालत में तुम क्या करोगे?” हंस ने दूसरी डोरी चोंच में पकड़ी और खींच दी, तभी जोरदार धमाका हुआ। लाखी को घंटी की आवाज बड़ी अच्छी लगी थी और धमाके से तो वह बावली हो उठी, दर के चारों ओर दौड़ने और भौंकने लगी। “मौसी, चलो अपनी जगह!” अजनबी चिल्लाया। “चुप रहो!” इवान इवानिच का काम इस धमाके के साथ ही खत्म नहीं हुआ। इसके बाद घंटे भर तक अजनबी उसे अपने इर्द-गिर्द बागडोर पर दौड़ाता रहा और कोड़ा सटकारता रहा। हंस को दौड़ते हुए बाधाओं के ऊपर से और छल्ले में से कूदना पड़ता था, सीख़पा होना पड़ता था, यानी दुम पर बैठकर पंजे हवा में हिलाने पड़ते थे। लाखी टकटकी लगाए इवान इवानिच को देख रही थी, वह खुशी से भौंकने लगती और उसके पीछे दौड़ने लगती। आखिर हंस को भी और खुद को भी थकाकर अजनबी ने माथे से पसीना पोंछा और आवाज दी : “मार्या, ज़रा ख़व्रोन्‍्या इवानव्ना को बुलाओ इधर!” थोड़ी देर में घुरघुराहट सुनायी दी... लाखी गुरराने लगी, बड़ी बहादुर सी बन गई, पर फिर भी अजनबी के पास आ गई। दरवाजा खुला, किसी बुढ़िया ने अंदर झाँक कर देखा और कुछ कहकर एक काले से, बहुत ही बदसूरत सूअर को अंदर घुसेड़ दिया। लाखी की गुरहिट की जरा भी परवाह न करते हुए सूअर ने अपना धूथना ऊपर उठाया। लगता था कि वह अपने मालिक, बिलले और इवान इवानिच को देखकर बड़ा लाब्ख्ी 17




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