अनौपचारिका -मार्च 2012 | ANAUPCHARIKA HINDI MAGAZINE - MARCH 2012

ANAUPCHARIKA HINDI MAGAZINE - MARCH 2012 by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaरमेश थानवी -RAMESH THANVI

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

रमेश थानवी -RAMESH THANVI

No Information available about रमेश थानवी -RAMESH THANVI

Add Infomation AboutRAMESH THANVI

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सुबह जब मैं पिताजी की देखभाल कर रहा था - मैंने देखा कि पिताजी को लगी खून की बोतल खत्म हो चुकी है और डरने लगा कि कहीं उनके शरीर में हवा न चली जाए। मैंने नर्स से कहा कि वो इसे बदल दे। उसने रूखा सा जवाब दिया कि तुम खुद कर लो। मौत के उस नाट्य गृह में मैं भयावह स्थिति में था। मैं दुखी और निराश था। अंततः: नर्स आयी। मेरे पिताजी ने आंखें खोली और फुसफुसाए-तुम अभी तक घर क्‍यों नहीं गयी? यहां वह आदमी है जो मृत्यु शैय्या पर पड़ा है। वह अपनी भयावह स्थिति से बेखबर नर्स से पूछ रहा है कि वह अभी तक घर क्यों नहीं गयी। मैं स्तम्भित था। मैंने सीखा कि किसी अन्य व्यक्ति की फिक्र करने की कोई सीमा और स्थिति नहीं है। और बरदाश्त करने की भी कोई सीमा नहीं है। पिताजी का दूसरे दिन देहान्त हो गया। मेरे पिता उन लोगों में थे जिनके सिद्धान्त ही उनकी सफलता थे। उनकी मितव्ययता, उनकी विश्वबन्धुत्व की भावना और व्यष्टि समावेश भाव। इन सबसे ऊपर उन्होंने मुझे सिखाया कि सफलता अपने दु:खों से ऊपर उठकर समंधष्टि को देखना है। चाहे आपकी अपनी स्थिति कितनी ही खराब क्‍यों न हो। यदि कोई चाहे तो अपने अन्त:करण की पुकार पर अपनी तात्कालिक स्थिति से ऊपर उठ सकता है। सफलता भौतिक सुख साधन इकट्ठा करना नहीं है। ट्रांजिस्टर जो वे नहीं खरीद सके और मकान जो वे नहीं बना सके। उनकी विरासत नहीं भी हो सकते थे। उनकी सफलता और विरासत उनके आदर्शों की गतिशीलता है जो उनके छोटेपन, मामूली वेतन पाने वाले शासकीय कर्मचारी की मामूली दुनिया को हिमालयी सर्वोच्चता से गौरवान्वित करती है। मेरे पिता ब्रिटिश राज के अन्ध भक्त थे। वे पूरी गम्भीरता से इस बात पर शक करते थे कि देश के स्वतंत्र होने पर भारतीय राजनीतिक दल देश को चला पायेंगे। उनके लिए यूनियन जेक का उतरना दुखदायी परिघटना थी। मेरी मां इसके एकदम विपरीत थी। जब सुभाषचन्द्र बोस ने कांग्रेस छोड़ दी और पवना बंगलादेशओ आए (अविभाजित पूर्व बंगाल), तो मेरी मां जो उस समय स्कूल में पढ़ती थी-ने उनको माला पहनाई थी। उसने सूत कातना सीखा और एक ऐसे संगठन में शामिल हुई जो गुप्त रूप से काम करता था। उसने तलवार और चाकू छुरी चलाना भी सीखा। संयोगवश हमने अपने घर में राजनीतिक विविधता देखी । संसार भर के विभिन्न मुख्य मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण अलग अलग थे। हमने उनमें भिन्नता में अभिन्नता की ताकत और विविधता में एकता की खुशबू देखी। सफलता का अर्थ यह नहीं कि हम अपनी योग्यता को सिद्धान्तों की बलि चढ़ा दें। सफलता का अर्थ है कि हम दृढ़ता पूर्वक अपने विचारों को रखे और संवादहीनता को पोषित न होने दें। मेरी मां जब ८२ वर्ष की थीं तो उनको लकवा हो गया। वे भुवनेश्वर के सरकारी अस्पताल में भर्ती थी। मैं मां को देखने अमेरिका से आया। जहां मैं दूसरी पारी कर रहा था। मां के साथ अस्पताल में दो सप्ताह रहा जहां वे लकवाग्रस्त स्थिति में थी। यथास्थिति बनी हुई थी। मुझे लौटना था। जब मैं उसे छोड़कर जाने लगा, मैंने मां को चूमा। उसी लकवेग्रस्त स्थिति में भरभराती आवाज में मां ने कहा-तुम मुझे क्यों चूम रहे हो ? जाओ पूरी दुनिया को चूमो (आसमान चूम लो) वह नदी अपनी यात्रा पूरी कर रही थी। जीवन और मृत्यु के सम्प्रवाह में यह महिला जो भारत में शरणार्थी के रूप में आई थी जिसे एक विधवा ने पाला था, जिसका विवाह एक साधारण सरकारी नौकर से हुआ। जिसका अंतिम वेतन रु. ३० ०/- था। भाग्य ने जिसकी दोनों आंखें छीन ली और दुर्भाग्य ने लकवे का सेहरा पहना दिया वो मुझसे कह रही थी, गो एंड किस द वर्ल्ड । सफलता मेरे लिए दृष्टि है। अपने कष्टों से ऊपर उठने की ललक है। सफलता कल्पना शक्ति है। यह छोटे लोगों के प्रति संवेदनशीलता है। यह तादाम्य स्थापित करना है। सफलता विश्व बन्धुत्व है। सम्बन्धों की दृढ़ता है। सफलता जीवन से लेने के बारे में नहीं देने के बारे में है। यह साधारण जीवन से असाधारण सफलता प्राप्त करने का नाम है, गुडलक। गो किस द वर्लड। 0 अनुवाद -रजनीकान्त शर्मा लम्बे समय से लेखन पहल, सामयिक वार्ता, अक्षर पर्व, साक्षात्कार, मुक्तिबोध, एशियन एकेडेमी तथा तनाव में (रेनेर मारिया रिल्के) के अनुवार प्रकाशित। कथन कथादेश में कहानियां प्रकाशित। आकंठ और प्रेरणा में कविताएं प्रकाशित। ८४ में जनार्दन शर्मा स्मृति पुरस्कार, २०११ में सारस्वत सम्मान तथा २००२ में भवभूति सम्मान। ज सम्पर्क - २६, बंजरा हिल्स मीनाक्षी चौक, होशंगाबाद-४६१००१ मो. €६€७७१६६४७१ मार्च, २०१२




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now