निराली हड्डी | NIRALI HADDI

NIRALI HADDI by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaविलियम स्टीग - WILLIAM STEIG

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“रुको,” लोमड़ी ने कहा. पर्ल डर से सहम गई. “में तो तुम्हारी कब से तलाश में थी,” लोमड़ी ने कहा. “तुम जवान, मोटी और मुलायम हो. आज रात में तुम्हें खाऊँगी.” फिर लोमड़ी ने पर्ल को दबोचने की कोशिश की. “उसे छोड़ दे, बदमाश,” हड़डी चिल्लाई, “नहीं तो मैं तेरे कान काट लूंगी!” “यह कौन बोल रहा है?” लोमड़ी ने आश्चर्य से पूछा. “में एक भूखा मगरमच्छ हूँ, जिसे लोमड़ी का ताज़ा गोश्त बेहद पसंद है!” हड़डी ने उत्तर दिया.




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