कालिदास और उनकी कविता | Kalidas Aur Unki Kavita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( शप समस्या को हल करना दो उन्होंने झपने जीवन का प्रधान उददेश समसा । ऐसी स्थिति में फवियों घर राज का चरित कोई क्यो लियना श्लौर देश का इतिहास लिखकर कोई फयी झापना समय खोता ? + यह श्राख्यायिद्धा प्रसिद्ध है कि कालिदास विक्रमा- दिव्य फी सभा फे नव-रक्षों में थे । नो एणिडत उनकी ससा' के रल-रूप थे; उन्हों में कालिदास की भी गिनती थी । गोज् से यह वात भ्रम-मूलक लि हुई दे 1 “घन्वन्तरि- झ्पणुकामरसिंदशडू ”--थादि पद्य में जिन नौ विद्वानों के नाम थ्राये हैं वे कमी समकालीन न थे । चराहमिहिर भी इन्हीं नौ विद्वानों में थे । उन्होंने थपने ग्रन्थ प्चसिद्धान्तिका में लिखा है कि शफ ४२७. झथात्‌ ५०५ इंसवी, में इसे मैंने समाप्त किया । झ्तपव जो लोग ईसा के ५७ वे पूचे उज्जैन के महाराज चिक्रमादित्य की सभा में इन नी घिद्वानों का होना मानते हैं वे भ्रूलते हैं । कालिदास चिक्रमादित्य के समय में ज़रूर हुए पर ईसा के ५७ वर्ष पहले नहीं । ईसा के चार-पाँच सी बर्ष चाद किसी श्औौर ही विक्रमादित्य के समय में वे हुए । इस राजा की भी राजधानी उज्जैन थी । यद्द नया मत हे । इसके पोषक कई देशी 'और चिदेशी चिद्वान्‌ हैं। इन विद्वान में कई ,.का कधन तो यदद है कि कालिदास किसी राजा या मद्दाराजा के झाधित ही न थे । वे गुन्तचंशी फिली घिक्रमा- दिंत्य फे शासन-फ्राल में थे धवश्प; पर उसका 'ाश्रय उन्हें न था । हाँ, यदद दो सकता दे फि थे उज्जैन में चहुत दिनें तक रहे हो शीर उज्ञपिनी-नरेश से सद्दायता पाई दो ! परन्तु उज्ञुनी के श्रघी्वर के वे झाधघोन न थे । उनका नाटक वे असिदज्ञान-शाकुल्तल उज्जैन में मददाकाल-मद्दादेव के किसा




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