कालिदास और उनकी कविता | Kalidas Aur Unki Kavita
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.12 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( शप
समस्या को हल करना दो उन्होंने झपने जीवन का
प्रधान उददेश समसा । ऐसी स्थिति में फवियों घर राज
का चरित कोई क्यो लियना श्लौर देश का इतिहास लिखकर
कोई फयी झापना समय खोता ? +
यह श्राख्यायिद्धा प्रसिद्ध है कि कालिदास विक्रमा-
दिव्य फी सभा फे नव-रक्षों में थे । नो एणिडत उनकी ससा'
के रल-रूप थे; उन्हों में कालिदास की भी गिनती थी ।
गोज् से यह वात भ्रम-मूलक लि हुई दे 1 “घन्वन्तरि-
झ्पणुकामरसिंदशडू ”--थादि पद्य में जिन नौ विद्वानों के
नाम थ्राये हैं वे कमी समकालीन न थे । चराहमिहिर भी
इन्हीं नौ विद्वानों में थे । उन्होंने थपने ग्रन्थ प्चसिद्धान्तिका
में लिखा है कि शफ ४२७. झथात् ५०५ इंसवी, में इसे मैंने
समाप्त किया । झ्तपव जो लोग ईसा के ५७ वे पूचे
उज्जैन के महाराज चिक्रमादित्य की सभा में इन नी घिद्वानों
का होना मानते हैं वे भ्रूलते हैं ।
कालिदास चिक्रमादित्य के समय में ज़रूर हुए
पर ईसा के ५७ वर्ष पहले नहीं । ईसा के चार-पाँच सी
बर्ष चाद किसी श्औौर ही विक्रमादित्य के समय में वे हुए ।
इस राजा की भी राजधानी उज्जैन थी । यद्द नया मत हे ।
इसके पोषक कई देशी 'और चिदेशी चिद्वान् हैं। इन विद्वान
में कई ,.का कधन तो यदद है कि कालिदास किसी राजा या
मद्दाराजा के झाधित ही न थे । वे गुन्तचंशी फिली घिक्रमा-
दिंत्य फे शासन-फ्राल में थे धवश्प; पर उसका 'ाश्रय उन्हें न
था । हाँ, यदद दो सकता दे फि थे उज्जैन में चहुत दिनें तक
रहे हो शीर उज्ञपिनी-नरेश से सद्दायता पाई दो ! परन्तु
उज्ञुनी के श्रघी्वर के वे झाधघोन न थे । उनका नाटक
वे
असिदज्ञान-शाकुल्तल उज्जैन में मददाकाल-मद्दादेव के किसा
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