कालिदास और उनका युग | Kalidas Aur Unka Yug

Kalidas Aur Unka Yug by भगवतशरण उपाध्याय - Bhagwatsharan Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यूवंयूग २३ 'चल रहा था वहाँ एक दिशा से भारतीयत। के नाम से भी एक आन्दोलन चला । राजनीतिक और सास्कृतिक शुद्धता की देश में एक लहर सी उठी और विदेशी शको से जा टकराई । इसके नेता ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनो थे--मध्यभारत के वाकाटक ब्राह्मण राजा और पद्मावती (पदमपवायाँ--ग्वालियर, मध्य भारत) के क्षत्रिय भारकिव नाग । शाको से सास्कृतिकं क्षेत्र मे तो वस्तुत्त किसी प्रकार का डर न था । ये देश की जनता से घुलेमिले जा रहे थे, यहाँ के देवता-घर्म भी उन्होने अपना लिये थे । परन्तु उनका राजनीतिक महत्व निश्चय उदोयमान शक्तियों को पसन्द न था। झक राजाओो ने महाराष्ट्र और मालवा से दक्षिणापथ के प्राचीन सम्राट-कुलीय आा घ्र-सातवाहनो से दौर्घ॑- कालिक सवपं किया था, उस ब्राह्मण राजकुलं को उन्होने उखाड तक डाला था । साथ हो उसी पच्छिम की ही दिशा मे, महाराष्ट्र में ही , एक नई विदेशी प्रवल शक्ति उठ रही थौ ओर उन दोनो से उसने सफल लोहा लिया था । वह जाति अभीर थी । उसके नेता प्रसिद्ध साहित्यकार शूद्रक के पुत्र ईश्वरवर्मा ने लाभीरो का जो उघर साम्राज्य कायम किया भौर किसी समय पाटलिपुन तक दण्ड धारण करनेवाले सातवादनो तक की बची दाक्ति उन्होने उखाड फेंको तब उत्तरापथ में वडी हलचल मची । वाकोटको ओर भारशिव नागो ने उत्तर में वह कहानी फिर से न दुददराई जाय इस पर कमर कसी । दोनों में समय भारशिव नाग थे । कन्तित (ज़िला मिर्जापुर) और पद्मावती से उठकर उन्होने कुपाणो से ठोहा लिया । दूसरी-तीसरी इंसवो सदियों में कुपाण कनिष्क कं ववर अव भो उत्तर-पच्छिम, मयुरा आदि के स्वामी थे । भारशिवों ने उन पर भयकर हमले किये । नाग




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