वेद रहस्य प्रथम खण्ड | Ved Rhasay Khand I

Ved Rhasay Khand I by आचार्य अभयदेव विद्यालकार - Achary Abhaydev Vidyalakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इन अध्यायों के कुछ वचन कि यदि हम फसे रहते तो वे हमें असगति और अस्पष्टता की रात्रि में ठोकरो-पर-ठोकरें खिलाती हुई एक से दूसरे अधक्प में ही गिराती रहती; यह (उषा) हमारे लिये वद द्वारो को खोल देती है और वेदिक ज्ञान के हृदय के अदर हमारा प्रवेश करा देती है। यात्रा वह है जो कि प्रकाश और दाक्ति और ज्ञान के हमारे बढते हुए घन फे द्वारा हमें दिव्य सुख और अंमर भानद को अवस्था की ओर ले जाती हे। वेद के प्रतीकवाद का माधार यह है कि मनुष्य का जीवन एक यज्ञ है; एक यात्रा हैं, एक युद्क्षेत्र है। सचमुच, यदि एक बार हम फेद्रभूत विचार को पकड़ लें और वैदिक ऋषियों की मनोवृत्ति तथा उनके प्रतीकवाद के नियम को समझ ले तो कोई भी असगति और अव्यवस्था शेष नहीं रहती। ये रहस्यमय (वेद के) शब्द हैं, जिन्होंने कि सचमुच रहस्याथ॑ को अपने अदर रखा हुआ है जो अर्थ पुरोहित, कर्मकाण्डी, बैयाकरण, पड़ित, ऐतिहासिक तथा गाथाशास्त्री द्वारा उपेक्षित और अज्ञात रहा है। अदिति है वह सत्ता जो अपनी असीसता में रहती है और देवों की साता है। 16.




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