रघुवंश | Raghubans

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कालिदास का समय । ध्द मिठना चाहिए । इस विषय में उनका एक लेख जून १९.११ के माडने-रिव्यू में निकला है । उसमें वे कहते हैं कि १९०५ इंसवी में मेंने- ही इन बातें को सबसे पहले टू ढ़ निकाछा था | बंगछा के भारतसुह्दद्‌ नामक पत्र में “दीत- प्रभावे ” नामक जो मेरी कविता प्रकाशित हुई है उसमें सूत्ररूप से मेने ये बाते छः सात वर्ष पहले ही लिख दी थीं । १९.०९ में इस विषय में मेरा जो लेख रायल पदियाटिक सासायटी के जनेठ में निकल 'छुका है उसमें इन बातें का मैंने विस्तार किया है । अब इनका मत सुनिए । डाकर हार्नले की राय हैं कि उज्जेन का राजा यद्योघम्मी ही दयाकारि- विक्रमादित्य है श्रार उसा के शासन-काल या उसी को सभा में कालिदास थे | कारण यह कि ईसा के ५७ वर्ष पूर्व विक्रमादित्य नाम का काई राजा ही न था | जैसी कविता काखिदास की है चेसी कघिता--वैसी भाषा, वेसी भावभडी--उस जमाने में थी ही नहीं * । इंसा की पाचवों ग्रोर छठी सदी में, संस्कृत भाषा का पुनरुज्ञीवन हाने पर, वैसी कविता का प्राढुभोव हुआ था | इन सब बातें को मजूमदार महदादाय मानते हैं । पर यशाघम्मा के समय में कालिदास का हाना नहीं मानते । वे कहते हैं कि रघुचंश में जो इन्दुमती का स्वयंवर-वरणेन हैं उसमें उज्जेन के राज्ञा का तीसरा नम्बर है । यदि कालिदास यद्दाघम्मा के समय में, या उसकी सभा में; देते तो वे कभी पेसा न लिखते । क्योंकि यशाधम्मी उस समय चक्रवती राजा था । मगध का साम्राज्य उस समय प्रायः विनर हो चुका था । यदोाधघम्मा मगधघ की अधीनता में न था । अतपव, सगधघाधिप के पास पहले भ्रार उज्जेन-नरेदा के पास उसके बाद इन्दुमती का जाना यदाधम्मी के असहा हो जाता | अतपव इस राजा के समय में कालिदास न थे । फिर किसके समय मं थे ? बावू साहब का अनुमान है कि कुमार-गु्त के शासन के अन्तिम भाग में उन्होंने ग्रव्थरचना आरम्भ की म्रार स्कन्दयु्त की सृत्यु के कुछ समय पहले इस लेक की यात्रा समाप्त की । इस अनुमान की पुष्टि में उन्होंने श्र सो कई बाते लिखी हैं । आपका कहना हैं कि रघुवशा मे जो रघु का दिग्विजय है चह्द रघु का नहीं; यथार्थ में वह स्कन्द्सुत का दिग्विज्य-चरन है । आपने रघुवेदा में गुप्तेश के प्रायः सभी प्रसिद्ध पसिद्ध राजाओं के नाम दूढ़ निकाले हैं । यहाँ तक कि कुमारगु्त के ,ख़ुद करने ही के छिए कालिदास # कालिदास के पूर्षवर्तती भास कवि के स्वस्रवासवदत्तम श्रादि कई नाटक जो श्रभी हाल में प्रकाशित हुए हैं. उनमें कालिदास ही की जसी कविता श्रार भाषा है । अतएव, जा लाग यह समकते थे कि ईसा के पूर्व पहले शतक में कालिदास के ग्रन्थों की जसी परिमार्जित संस्कृत का प्रचार ही न था उनके इस अनुमान को महाकवि भास के ग्रन्थों ने निमूल सिद्ध कर दिया ॥




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