हिन्दी उपन्यास | Hindi Upanyas

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : हिन्दी उपन्यास  - Hindi Upanyas

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

घनश्याम राय - Ghanshyam Rai

No Information available about घनश्याम राय - Ghanshyam Rai

Add Infomation AboutGhanshyam Rai

डॉ. मीरा श्रीवास्तव - Dr. Meera Srivastava

No Information available about डॉ. मीरा श्रीवास्तव - Dr. Meera Srivastava

Add Infomation About. Dr. Meera Srivastava

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वैयक्तिक स्वातंत्र्य की शर्त स्वीकार कर मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा करने का प्रयत्न करता है। वह जीवन के अंदर से जीवन का साक्षात्कार करता है। इस पूरे विवेचन से हम स्पष्ट॒तः निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि - वैयक्तिक स्वतंत्रता की मांग सामाजिकता का विरोध करना नहीं बल्कि उसका विकास करना भी है। जो हमारे दायित्व-बोध से सम्बद्ध है। आज के उपन्यास की मूल संवेदना के संबंध मे यथार्थ पर विचार करना भी आवश्यक है। जीवन और उसके सत्य सबसे बड़े यथार्थ हैं। हमारा भावुक होना अनुभूतियों के स्तर पर हमारा संवेदनशील होना यथार्थ है। हमारा दुःखी या सुखी होना यहां तक कि मनुष्य की विशिष्टताएं तथा उसका अधूरापन भी यथार्थ है। जीवन के प्रति आस्थावान होना सबसे बड़ा यथार्थ है। उपन्यासों में जब तक यथार्थ की सापेक्षता नहीं होगी तब तक वैयक्तिक सामाजिक और सामूहिक चेतना के आधार पर मनुष्यों द्वारा ग्रहण की गयी अनुभूतियों का कोई महत्व नहीं होगा । प्रश्न उठता है कि यथार्थ के वे नये धरातल कौन से हैं। जिन पर आधुनिक उपन्यास की मूल संवेदना निर्भर करती है? आज का उपन्यास मनुष्य और उसके संसार के यथार्थ को दो भिन्न-भिन्न संदर्भो में नहीं स्वीकारता और मानव मुक्ति को इसी संसार से संबंधित करता है। इस प्रकार यथार्थ को आज का उपन्यास वस्तु सत्य के रूप में देखने का प्रयत्न करता है। आज का उपन्यास प्रेमचन्द की तरह यह कहकर सन्तोष नहीं कर लेता कि चूंकि यथार्थ भयंकर होता है इसलिए हमें आदर्श की ओर झुकना पड़ता है। वास्तव में यथार्थ के इसी नये धरातल पर आज के उपन्यासों में जीवन अपनी पूर्ण समग्रता से विकसित होकर व्यक्ति को पूर्णता प्रदान करती है। उसे करने के बजाय वह उसे नये आयाम देता है। जिससे नये मूल्य विकसित होते हैं और यथार्थ अपने पूर्ण रूप में उभर पाता है। अत आज के भारतीय उपन्यासों की संवेदना में विराग कुण्ठा तथा निस्संगता जीवित तत्व है। उन्हें नकारने का मतलब मूल सत्य की उपेक्षा करना है। जो समाज इन आधारभूत प्रश्नों को न तो (9)




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now