मानस - मीमांसा | Manas Meemansa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22.77 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द मानस-मीमांसा (घ) अरुण झलायक आलसी जानि अघन अनेरो । स्वारथ के साथिन तज्यों तिजरा केसो टोटक औचट उलटि न हेरो | २] [| भजन २७२ |) ध्यथ--मुकके गुणहीन नालायक ्ालसी श्र पापी जान- कर अपने मतलब के साथी माता-पिता ने तिजारी के टोटके को तरह तज दिया और भूलकर भी मेरे ओर नहीं ताका । परित्याग का कारण--यह बात सिद्ध हो जाने पर कि गोसाई जी के माता-पिता ने आपको सद्योजात अवस्था में ही तज दिया था अब इस बात पर विचार किया जाता है कि इस सद्योजात-शिशुत्याग का कारण क्या था । गोसाई जी के श्रच- लित जीवनी के लिखने वालों का कथन है कि झभुक्तमूल .. आप का जन्म अमुक्तमूल में हुआ था अतः वाब्वी थ्योरी ... आप के माता-पिता ने ज्योति शास्त्र के जात॑ शिशुं तत्र परित्यजेद्ा पिता समाश्चा्र मुख न पश्येत ( अर्थात् अमुक्तमूल में जन्मे बालक का या तो परित्याग कर दे या नहीं तो पिता आठ वर्ष तक उसका मँह न देखें ] इस वचन के अनुसार आप का त्याग कर दिया था आर इसके सबूत में वे कविताबली के सुनत सिहात सोच विधिहू गनक को ? ( उ० का० उड़े ) इस वचन को पेश करते हैं और इसका अर्थ यों करते हैं कि त्रह्मा को भी गॉसाई जी का जन्म अभुक्तमूल में हुआ बतलाने वाले गणुक अर्थात् ज्यौतिषी की मूग्वता सुनकर आश्चय और शोक हुआ । पर यह अर्थ प्रसंग तथा उक्त छन्द के तारपयये के अनुकूल नहीं होने के कारण ठीक नहीं हैं। इसका ठीक अर्थ जानने के लिए मैं उक्त छन्द को पूरा- पूरा उद्घृतकर उत्तका अर्थ कर देता हूँ--
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