भ्रमर गीत सार | Bhramar Geet saar
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27.64 MB
कुल पष्ठ :
722
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ्रमर-गीत सार श्चः
उद्धव के ब्रज झरागमन-का निम्न चित्र देखिए--
ऊचघो श्राये ऊधो श्राये, हरि को संदेसी लाये,
युनि गोपी गोप घाये, घोर न धरत हैं।
बौरो लगि दौरी उठी मौरो लौ भ्रमति साती,
रानति न गनी. गुरू लोगन दुरत है !
है गई विकल बाल बालम वियोग भरी,
जोग की सुनत बात गात ज्यों जरत है ।
भोर भये भूषन सस्हारे न परत श्रंग,
श्रागे को धरत पग पाछे को. परत है ॥।
रहीम की गणना भावुक कवियों में की जाती है। उन्होंने गोपी-उद्धव
प्रसग की लेकर कुछ श्रेप्ठ बर्रव लिखे है। रहीम ने गोपियो की श्रस्तव्यंथा का
अ्रत्यन्त सजीव वर्णन किया है ।
अमर-गीत परम्परा में घनानन्द, ब्जनिधि श्रादि कवियों के साम भी उल्ले-
खनीय है । घनानन्द की गोपियो में भावुकता कूट-बूट कर भरी है । न्रजनिधि ने
प्रीति पंचीसी' नामक २४ छन्दो की रचना मे गोपी-उद्धव प्रसंग को सफलता-
पूर्वक सजोया है । ब्रजनिधि की गोपियाँ उद्धव की. योग-वार्ता से तनिक भी
प्रभावित नही होती श्रौर कहती है--
रंचक हू सुधि नाहि हमें, जिनको पढ़ि जोग की देत कहा सिख ।
,जसेइ वे तुम तंसेइ हो झाजु जाशि परे सु दिखावे कहा लिख ।
दासी पिपारी करी ब्रज की निधि, ए सुनि बात उठे हिय में घख ।
सांवरे सांप डसी है से, तिन्हे ज्ञान सो सूढ़ उतारे कहा विष ॥
रसनायक ने भी 'विरह विलास' मे गोपी उद्धव प्रसग का वर्णन किया
है । रसनायक की गोपियाँ स्पष्टत: कह देती है कि योग श्रौर ज्ञान समभने की
क्षमता उनमे तनिक भी नहीं है--
मधघुवन की मानिनी जिती सुघर जानि है सार |
निर्गून तहाँ ले जाहु श्नलि ब्रज ही बसत गंवार । व
वि पद्माकर ने भ्रमर-गीत विपयक रचना .में श्रपनी मौलिक प्रतिभा का
परिचय दिया है । उद्धव से श्रपने मन, की व्यथा व्यक्त करते हुए गो पियाँ
कहती है कि-- - ०
न
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