भ्रमर गीत सार | Bhramar Geet saar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : भ्रमर गीत सार  - Bhramar Geet saar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about माया अग्रवाल - Maya Agarwal

Add Infomation AboutMaya Agarwal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भ्रमर-गीत सार श्चः उद्धव के ब्रज झरागमन-का निम्न चित्र देखिए-- ऊचघो श्राये ऊधो श्राये, हरि को संदेसी लाये, युनि गोपी गोप घाये, घोर न धरत हैं। बौरो लगि दौरी उठी मौरो लौ भ्रमति साती, रानति न गनी. गुरू लोगन दुरत है ! है गई विकल बाल बालम वियोग भरी, जोग की सुनत बात गात ज्यों जरत है । भोर भये भूषन सस्हारे न परत श्रंग, श्रागे को धरत पग पाछे को. परत है ॥। रहीम की गणना भावुक कवियों में की जाती है। उन्होंने गोपी-उद्धव प्रसग की लेकर कुछ श्रेप्ठ बर्रव लिखे है। रहीम ने गोपियो की श्रस्तव्यंथा का अ्रत्यन्त सजीव वर्णन किया है । अमर-गीत परम्परा में घनानन्द, ब्जनिधि श्रादि कवियों के साम भी उल्ले- खनीय है । घनानन्द की गोपियो में भावुकता कूट-बूट कर भरी है । न्रजनिधि ने प्रीति पंचीसी' नामक २४ छन्दो की रचना मे गोपी-उद्धव प्रसंग को सफलता- पूर्वक सजोया है । ब्रजनिधि की गोपियाँ उद्धव की. योग-वार्ता से तनिक भी प्रभावित नही होती श्रौर कहती है-- रंचक हू सुधि नाहि हमें, जिनको पढ़ि जोग की देत कहा सिख । ,जसेइ वे तुम तंसेइ हो झाजु जाशि परे सु दिखावे कहा लिख । दासी पिपारी करी ब्रज की निधि, ए सुनि बात उठे हिय में घख । सांवरे सांप डसी है से, तिन्हे ज्ञान सो सूढ़ उतारे कहा विष ॥ रसनायक ने भी 'विरह विलास' मे गोपी उद्धव प्रसग का वर्णन किया है । रसनायक की गोपियाँ स्पष्टत: कह देती है कि योग श्रौर ज्ञान समभने की क्षमता उनमे तनिक भी नहीं है-- मधघुवन की मानिनी जिती सुघर जानि है सार | निर्गून तहाँ ले जाहु श्नलि ब्रज ही बसत गंवार । व वि पद्माकर ने भ्रमर-गीत विपयक रचना .में श्रपनी मौलिक प्रतिभा का परिचय दिया है । उद्धव से श्रपने मन, की व्यथा व्यक्त करते हुए गो पियाँ कहती है कि-- - ० न




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now