हिंदू - मुसलिम समस्या | Hindu - Musalim Samasya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ हिंदू-मुसलिम समस्या के साथ-साथ इन सब में भी परिवर्तन होता रहता है । सामाजिक जीवन तपने को अनेक रूपों में प्रकट करता है जिनके आधार में उसके व्यक्तियों की जाति स्थान घ्म अथवा संस्कृति सम्बन्धी एकता की भावना नागरिक कर्तव्य इतिहास आर केवल मात्र संयोग झ्ादि अनेक बातें रहती हैं । यही बातें मनुष्य-मनुष्य को मिलाती हैं श्रौर यही उन्हें दूसरों से श्रलग भी करती हैं । समाज के विभिन्न समुदायों को एक-दूसरे से अलग रखने वाली बातों में सब से सुख्य वग॑ की भावना है--एक समुदाय की यह भावना कि वह राजनीतिक हैसियत में धन-दौलत में पेशे में शिक्षा में ख़ानदान के बड़प्पन में रहन-सहन के ढंग में दूसरे समुदायों से भिन्न है | जाति-पाँति प्राचीन समय में कुछ देशों में विशेषकर हमारे देश भारत में समाज के इस वर्गीकरण में इस नियम से श्र भी दृढ़ता ला दी गई कि विवाह-सम्बन्ध अपने वर्ग के अन्दर ही होना चाहिए । भारत का जन-समाज ब्राह्मण नुन्रिय वैश्य तथा शूद्र इन चार वर्णों के अतिरिक्त श्रनेक जाति-पाँतियों में विभाजित रहा है जिनका सुख्य श्राधार यही है कि उनके बीच विवाह-सम्बन्ध नहीं हो सकता । कौन लोग कहाँ के रहने वाले हैं क्या काम करते हैं आदि बातें भी इस जाति-पाँति के. प्रथक्करण में गौण रूप से सहायक रही हैं । पास-पास रहने वाले समुदायों का .कालान्तर में घुल-मिल कर एक हो जाना बड़ी स्वाभाविक सी बात है । इसलिए विवाइ-सम्बन्ध की रुकावट वाले नियम का कड़ाई के साथ पालन कराना आवश्यक हुआ । उसकी सहायता के लिए श्र नियम भी बने जैसे यह कि खानां-पीना भी अपनी जाति-पाँति वालों के साथ ही होना चाहिए । बिरादरी के नियमों का पालन करने में जरा सी भी त्रुटि होने पर जाति से बाहर कर देने का भी नियम चला । जाति-पाँति की प्रथा मनुष्य के उस संकीणु दृष्टिकोण तथा उन संकुचित




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