मानस प्रवचन | Manas Pravachan Puspa Viii
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.26 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
श्री रामकिंकर उपाध्याय अत्यंत उच्च कोटि के मानस प्रवचन के वक्ता थे. उनका जन्म 1 नवम्बर 1924 को जबलपुर में हुआ था. वो आचार्य श्रेणी के संत थे. उनके अन्दर रामायण ग्रन्थ का ज्ञान कूट-कूट कर भरा था. एक प्रख्यात एवं उच्च कोटि के प्रवक्ता होने बाद भी उनका जीवन बेहद सरल और सहज था. वो शांत चित एवं मेधाशक्ति के धनी व्यक्ति थे. वो लगातार 49 वर्षों तक राम चरित मानस पर प्रवचन देते रहे. 1999 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म भूषण से नवाजा गया. 9 अगस्त 2002 को ये मानस मर्मग्य कथावाचक पुरुष पंचतत्व में विलीन हो गए.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मानस-प्रबूचन ः श्री भरत जी ने गुरु वशिष्ठ को उलाहना दिया था कि मेरी मां ने जो दो वरदान मांगे थे कि भरत को राज्य श्र राम को वनवास तो पहले मुभ्झे राज्य मिलना था प्रभु को वनवास वाद में । यह क्रम उल्टा क्यो किया गया ? इसका रहस्य यह है कि इस उल्टे क्रम के पीछे कंकेई का श्राग्रह तो था ही कैकेई ने कहा कि न मैंने वरदान चाहें जिस क्रम से मांगा हो पर पहले राम को वन जाना हैग्नौर बाद सें भरत को राज्य मिलना है। यह कैकेई का तो हृठ था ही पर भगवान श्री राघवेन्द्र तो उसे झर भी किसी भिन्न दृष्टि से देख रहे थे । श्री राघवेन्द्र तो वन जाने के लिये इतने उत्ता- चले थे कि वे जानते थे कि यदि ननिहाल से भरत लौट करके झा गये तो मैं बन नही जा पाऊंगा । सारी योजना ही अस्त व्यस्त हो जावेगी | इसलिये भगवान श्री राघवेन्द्र ने श्रपने वनगमन को वनगमन न कहू करके उसकी एक नयी व्याख्या कर दी । श्रौर व्याख्या करके भगवान राम ने कहां कि सुभ्ते वन पहले जाना चाहिए श्रौर भरत को अयोध्या मे लौटकर वाद में श्राना चाहिए । तो भगवान राम का तक क्या था? बस वही जो उन्होंने कौदाल्या जी से कहा । जब कौशल्या ने श्रीराम से कहा कि चलकर स्नान कर लो कुछ कन्द मूल फल खा लो क्योंकि इसके पच्चात् तुम्हें अयोध्या के युवराज पद पर अश्विषिक्त किया जाएगा तो भगवान राम ने मुस्कुरा कर कहा कि मा सुभते तो राजा वना दिया गया है तुम तो मेरे युवराज होने की प्रसन्तता में इतनी आनन्दित हो तो तुम्हारा श्रानन्द तो न जाने कितना धढ जाना चाहिए क्योंकि युवराज के स्थान पर सीधे मुक्के राजा का पद दे दिया गया । कहा का राज्य ? तो भगवान राम ने बनगमसन का पिल्कुल बब्द ही वदल दिया । दूसरा व्यक्ति इसे देश निकाला कहेगा. वनगमन कहेगा पर भगवान राम मां से कहते पिता दीन्ह सोहि कालन राजू २०५२/६ पिताजी ने राज्य का बंटवारा कर दिया है । श्रयोध्या का राज्य . मेरे छोटे भाई भरत को भर बन का राज्य मुक्ते। पिता जी से यह चडा उपयुक्त बंटवास किया । श्रौर इसलिए भगवान श्रीराम ने कहा कि मै बन पहले जाऊंगा क्योकि बडे भाई होने के नाते राज्य पथ
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