हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय | Hindi Kabya Me Nirgun Sampradaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( थे ) हम सगणोपासना के स्थल रूपों जैसे मत्तियों तथा श्रवतारों श्रादि के प्रति श्रद्धा प्रदशित करने के विरोध के कारण ही निगृूणी कह सकते हूं । यहाँ पर यह भी उचित जान पड़ता है कि निर्गण संप्रदाय की विभिन्नता हम हिंदी काव्य के उन दो श्रन्य संप्रदायों के साथ भी समभ लें जो कुछ मात्रा तक इसके समान हूं श्रौर जिन्हें निरंजनी तथा सूफी संप्रदाय कहते हैं इनमें से पहला तत्वत हिंदू है श्रौर दूसरा इस्लामी है । ये दोनों निर्गण संप्रदाय से इस बात में भिन्नहें कि ये नकल. लक. 4 ला नपलकपनिनामर डक न लग न लशाथथगिगए जानसि नहिं कस कथसि शयाना | दम निगण तुम सरगुन जाना ॥| कबोर अंधथावली प्र० १३०५ 1 निगन मत सोइ वेद को झंता । तह्म सख्प अध्यातम संता ॥ गुल्नाल ( म० चा० ए० ११४ ) 1 खट दरसन को जीति लियो है। निरगुन पंथ चलाये नाम जो कबीर कहायें ॥ झंथ शब्दावनी ( हु० लि० )) में किसी सुरत गोपाल के अनुयायी का कथन । ._...निरंजनी संप्रदाय के प्रसुख कवि१--झनन्ययोग के रचयिता श्रनन्य- दास (ज० सन्‌ ११६८) निपट निरंजन (संत सरसी निरंजन संप्रइ इत्यादि के रचयिता) (ज० सन्‌ १५४ ३. मगवानदास निरजनों ( म्रेमपदाथ व झअखतधारा के रचयिता ) झाविभाव काल सन्‌ १९२६ इईं० इस संप्रदाय के सम्बन्ध सें श्रभी तक त्वस्तुत कुछ भी नहीं किया गया हे । इस संबंध में डॉ० बदथ्वाल का एक त्तग लेख उनके निबन्ध संग्रह में देखिये । -एसम्पादक । 1--सूफियों के लिए पं० रामचन्द्र शुक्र का हिंदी साहित्य का इतिहास (ए० ६४ 3 १४) (तथा प्रस्तुत अंथ के ३७ से ३० तक) प्रष्ठ देखिये ।




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