गोस्वामी तुलसीदास | Gosavami Tulsi Das

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Gosavami Tulsi Das by डॉ पीताम्बरदत्त बडध्वाल - Peetambardatt Bardhwalश्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जोबन-सामग्री १३ पवित्र दूसरा पात्र हे! नहीं सकता। इस पर नाभादासजी ने तुलसीदासजों का गले से लगा लिया और कहा कि भ्राज झुझे अक्तम्ाल को सुमेर मिल गया। वे अवश्य तुलसीदासजी के लवध मे बहुत छुछ तथ्य की बातें जानते रहे होगे, पर अभाग्यवश उनके वर्शम इतने सत्तेप से ल्िग्दे गए ह कि उनमे प्रशंसा के अतिरिक्त और कुछ नहीं आर पाया है। प्रत्येक भक्त का वर्णन एक एक छप्पय में क्रिया गया है। तुलसीदासजी के विषय से उन्होंने लिएा ऐ-- “कलि कुटिल जीय निम्तार दित थालमौकि तुरसी भये ॥ ब्रेता फाप्य नियंध दरी सत कोटि रसायन । इक भक्कर रच्चो ब्रह्महन्यादि परायन ॥ अप भक्तन सुसदेन बहुरि घपु घरि (रीला) विस्तारी । रामचरन रस मत्त रहत अहनिसि धतधारी ॥ संसार अपार थे पार को सुगम रूप पका लिये । कौरि छुटिछ जीए निम्तार हित वालसीकि तुरुसी भये 0! इससे अधिक से अ्रधिक्र यही पता चल सकता ऐ कि तुलसीदास ने वाल्मीफि के समान समाज का कोई उपझार फ़िया था प्र्थात्‌ रामायण रचा थी जिससे थे फलिफाल के वाल्मीकि हुए, परतु इससे छुलसीदासजी के विपय से हमारे ज्ञान की कुछ भी चृद्धि महा होती । ऐसा जान पड़ता ऐ कि खय नाभाजी को अपने बणेनें को सच्िप्तता सटकती थी । उनऊ्ी इच्छा थी कि कोई उन्तझा विस्तार करे। उनके शिष्य बालक प्रियादास ने उनकी यह इच्छा अपनी गाँठ बाँधी और येग्य होने पर सवत्‌ १७६६६ से उसकी पूर्ति के लिये उस पर अपनी टौका लिसी--- क संत असिद्ध दस सात संत उनदभ्तर, फाल्गुन मास यदी सप्तमी जिताह के।॥




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