हितोपदेशः | Hitopadesa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.34 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
नरायण पंडित Narayan Pandit
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पण्डित रामेश्वर भट्ट - Pandit Rameshvar Bhatt
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्ताविका ? २९-२७] भाषाटीकासर्मड़कृत । ३ --इत्याकर्ण्यात्मनः पुत्राणामनधिगतधास्त्राणां नित्यमुन्मागगा- मिनां चास्राननुष्नेनोडिसमनाः स राजा चिन्तयामास-- इन दोनो छोकोंको सुनकर वह राजा शाख्रको नहीं पढ़नेवाढे तथा प्रतिदिन कुमागमें चलने वाले अपने लड़कोंके शाख्र न पढनेसे. मन व्याकुछ होकर सोचने लगा--+ कोर्ड्थः पुत्रेण जातेन यो न विद्वास्र घार्मिकः । काणेन चश्नुषा कि वा चश्वुः्पीडेव केवलम् ॥ १२ ॥ जो न पण्डित है और न धर्मशील है ऐसा पुत्र उत्पन्न हुआ किस कामका १ जेसे काणी आंखसे क्या सरता है केवल अँखकोही पीड़ा है ॥ १२ ॥ अजातसृत मूर्खाणां वरमाद्यो न चान्तिमः । सछड खकरावाद्यावन्तिमस्तु पदे पदे ॥ १३ ॥ उत्पन्न नहीं हुआ तथा होकर मर गया और मूखे इन तीनोंमेंसे पहले दो अच्छे हैं और भन्तिम(मूख)का अच्छा नहीं क्योंकि आदिके दोनों एकही वार दुःखके करने वाले हैं. अंतिम क्षणक्षणमें (हमेशा) दुःख देता है ॥१३॥ किंच -- ं वर गर्भस्रावो वरमपि च नैवाशिगमने वरं जातः प्रेतो वरमपि च कन्येव जनिता । वरं वंध्या भार्या वरमपि च गर्भषु वसति- ने चा5विद्दान् रूपद्रविणयुणयुक्तोधषपि तनयः ॥ १४ ॥ और गर्भका गिर पड़ना ख्रीका संसग न करना उत्पन्न होकर मर जाना कन्याका होना ख्रीका बँझ रहना अथवा उसके गभमेंही रहना अच्छा है परन्तु सुन्दरता तथा सुवर्णके आभूषणोंसे युक्त मूखें पुत्र होना अच्छा नहीं ॥ १४ ॥ किंच -- स जातो येन जातेन याति वंदाः समुन्नतिम् । परिवततिनि संसारे सुतः को वा न जायते ॥ १५ ॥ और जिस पुत्रके उत्पन्न होनेसे वंशकी बड़ाई हो वह जानों उत्पन्न हुआ नहीं तो इस असार संसारमें मरकर कौन मनुष्य उत्पन्न नहीं होता है अर्थात. बहुत-से होते हैं और बहुत से मरते हैं ॥ १५ ॥ गुणिगणगणनारम्भे न पतति कठिनी सुसंख्रमाद्यस्य । तेनास्वा यदि सुतिनी वद वन्ध्या कीदद्ी नाम ॥ २६ ॥ गुणियोंकी गिनतीके आरंभमें जिसका नाम गोरव पूर्वक खडियासे नहीं लिखा जाय ऐसे पुत्रसे जो माता पुत्रवती कहलावे तो कहो बॉझ कैसी होती है? अर्थात् जिसका पुत्र निगुणी है वही बॉझ है ॥ १६ ॥ अपि च -- क ः दाने तपसि शोयें च यस्य न प्रथितं मनः । विद्यायामर्थलासे च मातुरुजार पव सः ॥ १७ ॥ १ उत्पन्न नहीं हुआ और दोकर मर गया. २ सूखे. व
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