सोंदर्य विज्ञानं | Soundarya Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सौन्दर्य विज्ञान द् गमकोंमिं सिले हुए पुष्प समूदको जिस म्रकार इम छोग सुन्दर कदकर असस दोते हैं, वेसे ही एक जंगढी भी होता है। किसी ऊँचे गिरि- शिखरकों देखनेकी छालसा सम्य मजुप्य एवं असम्य दोनींमें समानरूपेण पायी जाती ए । ऊँचे पहाद परसे घोर गर्जेनाके साथ गिरते हुए किसी जल प्रपातकों देखकर जिस प्रकार मारा मम घढाँसे इटनेको राजी नहीं होता, वैसे ही एक असम्य सनुष्यका मन भी हद करता है । इसी तरद शोशियोंको सानस्द्दायिनी, कवियोकी सर्वस्वं, कमर एवं 'कूवा- सकईकी आशा, ससारकों प्रतिदिन नदीन दिव्य सन्देश सुनानेवाली, श्रकृति-सुन्द्रीकी सोहागरुपिणी उपाकी एकटक देखते रद्द जानेकी प्रवृत्ति सम्य जसम्य सवमें है। सारांश यह कि माकृतिक इद्योको देखकर उनमें सौंदर्थका अजुभव करने और पसन्द करनेकी प्रश्ति भी संबं मजुष्योंमें पायी जाती है। शिक्षा एवं अम्यास तथा पैयिक प्रदृत्तिके कारण किसी प्राकृतिक इश्यके विपयमें जंगछियीं पुरे सम्माम अथवा सम्य सम्योर्म कुछ मतभेद भले ही दो--जेसे अदय एवं फारसके सम्य रोग घुछबुल पूर्व गुडावपर मुग्ध हैं, तो मारतीय भद्वपुरुप कोकिछ पु वमरपर कलम तोड़े बैठे दैं--पर इससे इमारे इस कथनमैं कि 'प्राकृतिक इृश्योंको पसन्द करनेकी प्रद्त्ति सबमें पायी जाती है' कोई अन्तर भद्दीं पढ़ता । प्रवृत्ति तो साननी ही पढ़ेगी | सीसरी बात जो सब सजुप्दोंमें पायी जाती है, शपनी सजावटकी भदुत्ति टै। यद प्रदूत्ति दो प्रकारसे प्रकट होती है। पक वो प्रक्ृति- दत्त चरीरकी चनाचरटमें ही अपनी रुचिके अनुसार परिवर्तन फरनेकी से्टाके रूपमें और दूसरी शरीरकीं आाभूपण सादि ऊपरी सजावद्से सुन्दर यनानेकी प्रशुत्तिके रूपमें । पहली प्रवूत्तिने तो मनुष्य जीवनमें इतना सदतपूणे स्थान ग्रहण किया है कि छोग अपने शरीरकों सुन्दर थनानेकी घुनमै कठिनसे कदिन शारीरिक कष्ट भी सर्द स्वीकार करते हैं। लार्ट्रेंडियाम अब मी एक ऐसी जंगछी जाति है जिसके पतिपय पुरुष




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