अठारहवीं अक्षांश रेखा | Atharahavin Akshansha Rekha

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Atharahavin Akshansha Rekha by अशोकमित्रन - Ashokamitran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आमुख इस उपन्यास को आज से तीस साल पहले भी लिख सकता था । पर सोचता हूं हो लगता है अच्छा किया जो नहीं लिखा | कई बार सोचा तीस साल पहले जिस भूमि को पीछे छोड़ आया था वहीं जाकर कुछ दिनों के लिए रहूं और उपन्यास पूरा करू ।.पर अब यही लगता है ठैसा न करके ठीक ही किया.। मैं नहीं जानता तीस वर्ष पूर्व की घटनाओं और सस्मरणों रचना में ढालने की प्रक्रिया में वर्तमान कितनी दूर तवा सहायक बन सका है । हो अर ऋदनसललून्वदसममदददध्यायधयाकदरन्यदन के. सचन्याय दण नहीं उद्गई मो ह सकता हैं यह उपन्यास कभी लेखा ही नहीं जाता | 32 पा अर. उन कशाशा ठउ दस उपन्यास के कथाकाल सन 1930 और चालीस के दौरान इसकी कथाभमि एं ्य् 2 शेड कसम हर फैस्ा क कल या 2 का दे रु पर न्यय सपा वसा समन सकता 1 झात्झक हा ह् भर पं ष् पृ गा भ् भर श् ण्नु स्ः्शः पर प फिम्क भी हब ्। | हु न द क हट हर शु ४ ड् धज 54 दृ ड् ः भ्व्यीँ दु शर रु हु और उपन्यास की सीमा रेखा के विषय में मेरा अपना मत है । हैसे देखा जाये रा अर उपन्यास का सामा रखा के 1५ न सर अपन न & 1 दा खा जाप पर का का न शा ुल्ययकनररपरकरययपदररपया कर न्क ठश युग या देन रऊ लि पड चर न उपन्यास आत्मकशधात्मप &। छाए & 1 याद सर व्पारणों पाप मरी पारमर ऊ नये एक ठ् अर उ० पा ५१९८ न. ५ ५६ घर चना थे पष। मे खाए ८ । की मम ] ए काट पे. भ्न्ती दनन कु चमक ञ्श कै जया देना उ- ४ हृकााणा सदा न्य्छ नया. मयकुनननदयन म्दा दा सर दस & पर जद तक हुई पर रप ढप हा कु जूस जन उीज दे -क- ठों दि मे जान ललमाड कक का लए कसा चाज को टालत जान उस अर यययक पय दे रन से का फम्टर भाषा औ का जिसे डा पि सात महीनों तक विदेशी परिवेश भाषा और संस्कृति के बीच जीते हुए इस उपन्याप्त को लिखना जैसे जरूरी हो गया । मैं आयोदा विश्वविद्यालय का बहू आभारी हू | तमिल साहित्य के भविष्य में आस्था रखने वाले मेरे परम मित्र श्री ति. क. सी. के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूं । उनके साथ बैठकर इस उपन्यास पर जो थी उसका ही परिणाम है इसका तीखापन सिन्न श्री एस. कृष्णन का शी आभार प्रकट करता हूं । अतीत के ऐतिहासिक पात्रों घटनाओं के चित्रण में जिस दृष्टि और दक्षता की आवश्यकता है व उनके संसर्ग का ही परिणाम हैं । अगर उपन्यास मे खामियां हों तो वे मेरी अपनी है | श्री. कस्तूरीरंगन ने इस उपन्यास को कणैयाषी में धारावाहिक छापा था । अगर




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