उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत के वाग्येका तथा इनका योगदान | Uttar Bhartiya Shashtriya Sangeet Ke Vagyeka Tatha Inka Yogadan

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Uttar Bhartiya Shashtriya Sangeet Ke Vagyeka Tatha Inka Yogadan by गीता बनर्जी - Geeta Banrjiसुस्मिता देब - Susmita Deb

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर्शन साहित्य इतिहास भूगोल खगोल फलित ज्योतिष तथा रीति नीति का वर्णत अपने ज्ञान के अनुसार ही किया है। कुल मिलाकर यही निष्कर्ष निकलता है कि श्रेष्ठ वाग्गेयकार व विद्वान पलायन हेतु बाध्य हुए और यत्र-तत्र रजवाडों व सामतों के यहा आश्रय ग्रहण किया।. खुसरो यद्यपि ईरानी संगीत का मर्मज्ञ था तथापि उसकी द्रष्टि मे भारतीय सगीत ससार भर मे सर्वश्रेष्ठ व अद्वितीय है। सूफियों का प्रभाव खुसरो पर काफी पडा था। खुसरो की विद्या ही समगीत जीवियों के लिये अर्धकारी रही और मुस्लिम अधिकृत प्रदेशों के सगीत जीवियों के लिये कौल कब्वाली गजल आदि सीखना और सूफियों की मुरीद होना आवश्यक हो गया। इसी आर्थिक विवशता ने अनेक सगीत जीवी हिन्दुओं को इस्लाम स्वीकार करने के लिये बाध्य होना पडा। अत स्पष्ट है कि ।3वीं-14वीं शताब्दी मे खुसरो की पद्धति को देश भर मे फैलाने का प्रयास किया जाता रहा।... पन्द्रहर्वी शताब्दी के उत्तरार्क एव सोलहर्वी शताब्दी के आरम्भ मे मानसिह तोमर जेसे हिन्दू शासक के प्रयासों से ध्रूपद शैली का प्रादर्भाव का उल्लेखनीय घटना कहीं जा सकती है। इससे पूर्व भी रस और भाव के स्थान रागों के रूप और ध्यान की उद्भावना हो चुकी थी।. मुगल समप्राटों के काल मे धूपद शैली काफी प्रचलित व लोकप्रियता रही।. शर्की द्वारा आविस्कृत ख्याल शेली को पुन. उठाने का प्रयास मुहम्मदशाह रंगीले द्वारा किया गया इसी प्रकार पजाब की लोकगीत के रूप मे प्रचलित ट्प्पा शैली को अबध के नवाब आसफुददौला के समय स्थापित किया. गया।... वाजिद अली शाह के समय ठुमरी दादरा व गजल की महत्ता काफी थी।




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