विकमांकदेव चरित के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक तथ्यों का आलोचनात्मक अध्ययन | Vikamankdev Charit ke Etihasik Evm Sanskratik Tathyo Ka Aalochnatmak Adhyayn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वाद कक. इन्द्र नै कसी की बात नहीं सुनी न स्वर्ग की ही चिन्ता की अपितु चिन्राकित हुँबा सा क्षण काम्ति वाला ही गया (बात इन्द्रपद किन जाने के मय से स्तव्थ तीर काम्तिहीन ही गया ) । .... दस विवरण से ज्ञात होता है कि कौशिक गोघ्री बाण मध्यदेश के की रहने वात थे जिन्हें गोपादित्य नायक नरेश वै लाकर काश्मीर मैं बसाया था | इस समय ये ड्ाल्णा खीनमुख ग्राम मैं निवास कर रहे थे । थे डाहण बल्परायण थे बार निरन्तर यज्ञादि क्काएड. मे निश्त रहा करवे थे । काश्मीर प्रदेश के समस्त डाह्णा अपने की काश्मी एक अर सारस्वता की रुक शाला कहते हैं । यही नहीं पंजाबी बालएा ९वं सती भी श्रपना यहीं गौत्र बताते हैं । त यह अनुमान संगत माना जा. सकता है कि ये बाण सारस्वत वश मैं उत्पन्न कौशिक गौघी थे | की ..... बिल्हण नै प्रवरपुर की सारस्वत कुल (ड्रासएएँ) का जनक कहा हैं | इससे व्यक्त हीता है कि प्रवरपुर मैं सारस्वती की प्रधानता थी । क्णसिन्दरी (१1१०७) मैं विल्हएा ने अपने विषय मैं कहा है पुर की जलाने वाले भगवान (शिव) की फ़ियतमा (पार्वती ने अत्यधिक भाग्यशातसी जिसे स्वयं पुत्र के समान है चिकुमा७ श८| ७३-७४ २. व्यूहता रिपीर्ट जण्वाण्या०रा०्रण्सी० ८७७ पुष श६ रै पाठक पु० ए६ हर ४ विकमा० १८1६ मैं बुम सारस्वतकुलभुव कि निषे कौतुकाना तस्यानकादुुतगुएाकथाकी ए किए सुतस्य । _ ये स्त्रीणपमधि किमपर जन्समभाध पवदैव प्रत्यावार्स चिल्सतिवच . संस्कुर्त प्राकृत च 11 मैं सारस्वत कि का अर्थ सरस्वती कै ब्रादिधाम थी किया गया है धारण मु० श८२)+ परम्तु यहां पर साएस्वतकुल का फ्रयाँग सामिपाय प्रतीत हीता है |




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