अद्धैत वेदान्त और माध्यमिक बौद्ध दर्शन के परम तत्त्व का समीक्षात्मक अध्ययन | Adwait Vedant Aur Madhyamik Bauddh Darshan Ke Param Tattawa Ka Samikshatmak Adhyayn

Adwait Vedant Aur Madhyamik Bauddh Darshan Ke Param Tattawa Ka Samikshatmak Adhyayn by जय जय राम उपाध्याय - Jai Jai Ram Upadhyaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 में देवताओ की स्तुति आहुति आदि मन्त्रों के समान ब्राहमण का कार्य यज्ञ सम्बन्धी क्रिया का व्याख्यान करना है। मत्र बीजरूप है तथा ब्राहमण वृक्षरूप है मत्र संक्षिप्त तथा ब्राहमण भाष्य है। ब्राहमण की सहायता के बिना मंत्रों का अर्थ स्पष्ट नहीं हो सकता। जैसे सूत्र का भाष्य के बिना अतः ब्राहमण ग्रन्थों में यज्ञों का विशद्‌ विवेचन है। याज्ञिक क्रिया की व्याख्या है गोपथ ब्राहमण में स्पष्टतः कहा गया है कि यह यज्ञ की आत्मा ही है। ब्राहमणों के सम्बन्ध में विवाद ब्राहमण के लक्षण के सम्बन्ध में मत्रो के समान बडा विवाद है | आपस्तम्ब यज्ञ परिभाषा २ में बतलाया गया है कि याज्ञिक कर्मों मे प्रवृत्ति करने वाला ही ब्राहमण है | इससे स्पष्ट है कि ब्राहमण विधिरूप हैं या विधायक रूप हैं क्योकि यह कर्म में प्रवृत्त करता है । कुछ लोग जैसे जैमिनि आदि ऋषि बतलाते है कि जो मंत्र नहीं है वही ब्राहमण है यही ब्राहमण या लक्षण है। तात्पर्य यह है कि मंत्र एवं ब्राहमण दोनो ही वेद है। मंत्र के शेष भाग को ब्राहमण कहते है। माधवाचार्य तथा सायवाचार्य आदि विद्वान भी ब्राहमण का यही लक्षण मानते है। परन्तु यह लक्षण भी यथार्थ नहीं स्वीकार करता। इसका तात्पर्य यह है कि इस लक्षण से ब्राहइमण के स्वरूप का पता नहीं चलता। इससे केवल इतना ज्ञात होता है कि जो मंत्र नहीं है वह ब्राहमण है यह अभावात्मक परिभाषा हैं । जिससे ब्राहमण के स्वरूप का पता नहीं चलता है १ तच्चौदकेषु मन्त्राख्या शेषे ब्राहमण शब्द - जै० मी० सू० २/१/३३ २. नास्त्येतद्‌ ब्राहमणोत्यत्र लक्षण विद्यतेड्थवा- डा० बी० एन० सिह पृ०्सं०३४




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