क्या भागवत अश्लील ग्रन्थ है | Kya Bhagwat Ashlil Granth Hai ?

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Kya Bhagwat Ashlil Granth Hai ? by नारायणसिंह भाटी - Narayan Singh Bhati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भक्ति-्मागं ७ कोई नहीं हो तो आस्वाद का विचार हीं केसे हो सकता है । अगवत्‌ प्रेम कैसा हे चदद बिना उपयोग किये केवल श्रन्थ पाठ से नहीं समसका जा सकता, पर यहदद उपयोंग दो कैसे, उसका आदशे मिले कहां ? पूरा नहीं, पर इस संसार में उस भगव प्रेम का कुछ थोड़ा परिचय जीव को श्राप्त होता है इसी भगवत्‌ प्रेस की शिक्ता का लाभ फरने के लिये संसार की सृष्टि है न कि पशु को भांति केवठ वंशद्रद्धि के लिये । पुत्र की मातु भक्ति, माता का ब्नन्य-स्नेद, मित्र का साख्य भाव, वन्घु की बन्धु-प्रीति श्ौर नायक और नायिका के परस्पर अजुराग से दी भक्त भगवत्‌ मेम का एकयोंडा-सा अनुभव श्औीर द्शन पाते हैं । शान्त, दास्य, साख्य, वात्सल्य श्रौर मघुर इन पांचों भावों की स्थिति से दी संसार की स्थिति है । जीव सात्र इन्दीं पांचों भावों के अधीन हैं । अनित्य, नश्वर, पार्थिव संसार से इन पांचों भावों को हटा कर भगवत चरणों में अपण करना ही भक्ति का साधन और परम पुरुपायथ है ! इन्दीं सांसारिक भावों का आदरश रख कर भगवत्‌ प्रेम प्राप्त करना होगा । विपयों से श्मासक्ति हटा कर भगवत्‌ भक्ति में डवना दोगा । पारस का स्पशे करवा कर छोदे को सोना चनाना होगा । एक साधक कवि ने क्या दी अच्छा कहा दे:--- या चिन्ता मुवि ख्री; पुत्र पॉन्रामरण न्यापार संसावसे । या पिन्ता धन घान्य भोग यशशांलामे सदा जायतें ॥ सा चिन्ता यदि नन्द-चन्दन पदछन्दार विन्देच्चणं । का चिन्ता यमराज भीम सदनद्वार अयासो सो ॥




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