मध्यकालीन भारत की सामाजिक और आर्थिक अवस्था | Madhyakalin Bharat Ki Samajik Aur Arthik Awastha

Madhyakalin Bharat Ki Samajik Aur Arthik Awastha by अब्दुल्लाह युसूफ अली - Abdullah Yusuf Ali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हद ) भत्ताई की जाँच लीधा की छपाई श्रौर हाथ की लिखाई से सबंधा अलग श्रार कंबल इसी से विशेषता रखनेवाली होगी । हमारा पहला कास ते एक सस्ते शरीर भरसक अच्छे टाइप का प्रचार है फिर ज्यों ज्यों समय बीतता जायगा सुन्दर श्नौर दशेनीय टाइप भी सिकल आ्ायेंगे शरीर आदशे नित्य ऊँचा उठता जायगा । टाइप के अधिकाधिक सुन्दर होने का रहस्य छपाई की सफाई श्रार शुद्धता सें निहित है। वत्तमान काल में जिस भाषा का सारा शअवलम्ब लीधा पर हो श्र छपाई के सम्बन्ध के टटके टटके आविष्कारों से लाभान्वित न हो सकती हो यथेष्ट॒ उन्नति तो दूर की बात है वह अपनी आवश्यकताओं से भी सिपट नहीं सकती । सम्मिलित भाषा या साभे की भाषा ्ापसे अपनी एकंडेसी को हिन्दुस्तानी एकेडेमी नाम देकर बड़ों दुद्धिमत्ता से काम लिया हैं। इससे देश की भाषा को इन प्रान्तें श्रौर देश के अन्य भागों में भरसक एक रंग की बनाने की इस इच्छा को बहुत डुछ पुष्टि मिल गई जा हर ज़िम्मेदार हिन्दुस्तानी अपने हृदय में अलुभव करता हैं। इसके अतिरिक्त मेरा यह भी विचार है कि आपने वत्तमान अवस्थाओं से झाँखें नहीं मूँद लीं बल्कि आप हसारी सम्मिलित हिन्दुस्तानी भाषा क॑ दोनों रूपों की अर्थात्‌ उर्दू श्लार हिन्दी दोनों लिपियों की उन्नति में यत्नवान हैं। मैं इस मंगलमय श्रान्दोत्न का हृदय कं अन्तस्तल से समधन करता हूँ जिससे हमारी सापा कं सिन्न रूपों में सुसंगति उत्पन्न हेॉंकर एक सम्मिलित झ्रादश स्थापित हो जानें की आशा हो सकती हू । मेरा विचार है कि अगर हमें इस उद्देश्य में यहाँ सफलता मिल गई तो इसका प्रभाव संयुक्त-प्रान्तों की सीमा से बाहर भी पडगा | एक प्रकार की सिश्रित हिन्दुस्तानी अ्व भी देश क॑ दे दिस्तार मे




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