जीवन में सफलता के रहस्य | Jeevan Me Safalta ke Rahsya

Jeevan Me Safalta ke Rahsya by श्री स्वामी शिवानन्द सरस्वती - Shri Swami Shivanand Sarasvati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थका-माँदा व्यक्ति जो संसार को श्रच्छी तरह समभ चुका हो श्रौर उसके सामने हार भी खा चुका हो योग की इरुरण में श्राकर ही शान्ति श्रौर विश्राम पा सकता है । दम से इन्द्रियों के दमन का झथे प्रकट होता है। यह साधन- चतुष्टय के षट-सम्पत्‌ का दूसरा अ्रज्ध है । ध्यान का क्या रथ है ? एक ही विचार की तन्मय धारा के प्रवाह को ध्यान कहां जाता है । नवविध भक्ति इस प्रकार जाननी चाहिए-श्रवण कीत्तेन स्मरण पादसेवन श्रचेन वन्दन सख्य दास्य श्रात्म- निवेदन | पद्मासन करने पर ध्यान में सरलता की प्रनुभूति होती है । फण उठा कर सपं शस्त्र उठा कर योद्धा चोंच उठा कर गृद्ध वार किया करते हैं पर इत्द्रियाँ विषय-वासना को उठा कर ही अपना वार किया करती हैं जो दुर्जेय रहता है । ब्रह्माचयें जीवन में सफलता की कुल्ली है । भक्तियोग भ्राज के लौहयुग में भगवहदशन का उत्तम मार्ग है। - मन्दिर जाना धर्मात्धता नहीं श्रौर न किसी जाति का धर्मगत पाखण्ड ही । यह तो उत्पाती मनुष्य को एक प्रकार के भ्रनुशासन श्रौर सिद्धान्तों में बाँधने का मनोवैज्ञानिक श्राघार हैं । यज्ञादि कर्मों को मिथ्या अथवा निःसार या पाखण्ड कह कर दूषित नहीं किया जा सकता । यज्ञ का प्रभाव वैदिक साहित्य में प्रतिलक्षित होता है श्रौर यज्ञ का अभाव श्राज की स्थिति को प्रकट करता है । रजोगुणी वृत्ति से भ्रनेकों मानसिक उपद्रव होते हैं सात्त्विक बन कर रजोगुण को हटा देना चाहिए ।. ( पन्‍्दरह )




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