शुक्ल जैन रामायण | Jain Ramayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.26 MB
कुल पष्ठ :
448
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. शुक्लचन्द्र - Pt. Shuklachandra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छ
सुमतिनाथ का जन्म हुआ । आप उनतालीस लाख पूर्व तक
गृहस्थाश्रम में रहे फिर वैशाख शुक्ल & को अयोध्या के उपवन
मे आपने ठीक्षा त्रत लिया । उसके ठीक बीस वर्ष पश्चात चेत्र
शुक्ला ११ को आपने केवल ज्ञान प्राप्त किया । इस ' के पश्चात्
इन्होंने भी एक लाख पूव तक दीक्षात्रत का पालन कर और अपने
शुक्ल ध्यान के बल से सम्पूर्ण कर्मो का चाय कर चैत्र शुक्ला ६
के दिन मुक्ति में पघारे । जब आप गर्स से थे, इनकी माता से
बड़ा ही सुन्दर न्याय किया था । वह इस प्रकार था--एक मनुष्य
के दो स्त्रियां और एक पुत्र था । इस बालक का पिता बचपन से
ही मर चुका था । उपमाता माता से भी झअधिक स्नेह उस
बालक पर करती थी । बालक साता और उपमाता को भी. सार
कह कर ही पुकारता था । छुछ समय बाद उन दोनो स्त्रियों में
विरोध हो गया । अन्त से दोनो के बीच भकगड़ा इतना बढ़ा कि
उन दोन। से से प्रत्येक पुत्र को मेरा-मेरा कह कर वड़े ही जो
से भकगड़ने लगी । अन्त में निश्वय आपस में कोई भी न होता
देख उन में से हर एक न्यायाघीश के पास गई । राजा ने विद्वानों
की सभा में बैठ कर दोना की लग अलग बाते सुनी । बालक
से पूछा गया | बालक ने उत्तर मे दोनो को अपनी साताएं बताई
यहां उपमाता पर और भी गहरा प्रेम प्रकट किया । शाजा और
उसकी सभा के विद्वान् बडे ही झाश्चये मे पड़ गये और झअतिम
निणुय नद्दी दे सके । रानी ने भी यह विचित्र घटना राजा
द्वारा सुनी । रानी ने इस उज्ञकन का सुनते ही सुलमका लिया ।
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