जैन हितेषी | Jain Hiteshi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jain Hiteshi by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

Add Infomation AboutNathuram Premi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्र जीवन व्यर्थ है ।.यदि उसने यह समझा कि मैं कुछ नहीं कर सकता तो वह कुछ भी न कर सकेगा; किन्तु यदि वह अपना कर्तव्यपाठन करनेके ठिए तत्पर हो तो उस काममें अवस्य उसे सफलता होगी | गरज यह कि विद्यार्थीके जीवनके कार्य बड़े कठिन हैं । उससे आशा की जाती है कि वह परिश्रम और उद्योगसे विद्योपार्जन करे, अपनेमें विचारशक्ति उत्पन करे और मनुष्यके स्वभावसे भली भॉति परिचित हो । केवल यह ही नहीं है, किंतु अपने विचारोंसे उन मानवीय शुणोको प्राप्त करे जिनका प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्यके लिए सम्भव है | बहडुतसी व्यर्थ बातोंको जिनकी अल्पावस्थाके कारण इच्छा होती है एक हृदतक रोकना पड़ता है । सम्यता और सचरित्रताके नियमोंका पाठन करना सबके लिए आवश्यक है, परन्तु उससे मादा की जाती है कि शिक्षाकी कृपासे उसमें उसके पूर्वजोंकी अपेक्षा अधिकतर गम्भीरता पैदा हो और वह उचित कार्य्य करे । विद्यार्थियों, तुमसे यह भी आशा की जाती है कि जब संसारिक कार्योके करनेका तुमको अवसर मिछे तो तुम प्र्ण स्वतंत्रता और इठतासे अपने उत्तम विचा- दरोंका प्रकाश करो | जो आज विद्यार्थी है वह कलको एक पुराधिकारी होगा । यदि उसको आत्मोन्नति अथवा समाजोन्नतिकी चिन्ता न होगी तो उसमें सर संकुचित इृदयवाले अशिक्षित मनुष्योंगें कुछ भी भेद न होगा । सम्पूर्ण समाज : उसकी ओर ठकटकी बेधिकर देख रहा है । भावी आशाएँ उसपर निभेर है। लाखों करोड़ो जीव जो नानाप्रकारके _ असद्य दुःख सह रहे है और जिनको अपनी उन्नति करनेका कोई अवसर नहीं मिढता, .वे हाथ जोड़कर उससे प्रार्थना कर रहे हैं कि 'उस कर्सव्यका पाठन कर जो एक भाग्यशाली भ्राताके सिरपर अन्य




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now