पांडव - पुराण अथवा जैन महाभारत | Pandav-puran Athva Jain Mahabahrat
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24.67 MB
कुल पष्ठ :
402
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला अध्याय । ही
जिसमें तक-वितकंके द्वारा स्याद्वाद कथंचित मतका मंडन और दूसरे कपोल-कर्पत
पिथ्या मतताका खंडन किया गया हो वह आश्षेपिनी कथा है। इसको कहने या सुननेसे
ज्ञानका विकाश दोता है । और जिसमें रत्नचय ( सम्पग्दर्शन, सम्यग््ञान और
सम्यकूचारित्र ? का ।निरुपण आंर पिथ्यात्व आदिका खंडन किया गया हो
वह विश्लेपिनी कथा है । इन गुर्णोंकी खान कथाके कहने या सुननेसे युर्णोकी
दद्धि होती है।
विकथा--खोटी कथा--वह है जो मिधथ्यात्वियों--व्यास आदि श्रंठि ठोगों-
की गढ़ी हुई कपाल-कट्पित बॉ तोसे भरी हुई हो । विकथाके कहने या सुननेसे
पाप-दंघ आर पुण्य क्ञीण होता है ।
हर एक सरकथाके आरम्भ लिन सात अंगोंका होना अतीव उपयोगी
और आवश्यक है थे ये है । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, तीथे, फल और प्रकृत ।
इसी नियमको छेकर यहीं सब कुछ लिखा गया है । अब इस पवित्र पुराणका
आरम्भ किया जाता है।
जम्द्द्वीप एक प्रसिद्ध और सुन्दर द्वीप है । वह सत्पुरुष॑का निवास और
सम्पत्तिका खजाना है । उसमें भरत नाम एक पवित्र और मनोहर क्षेत्र है । चद
भारती--सरस्त्रती--से विभूपित अतिश्य शोभावाला है। इसके छह खंड. है। उनमें
एक आयंखंड हैं। वह धीरवीर ओर इन्द्र जेसी विभ्रूतिवाढे परोपकारी आय घुरु-
पोंफा निवास है । वहाँके आये पुरुष अभयदान देनेवाले और धर्मात्मा हैं ।
आयेखंडमं विदेश नाम एक मनोहर देश दे। वह भी सुन्दर और उत्तम गुणोंसे युक्त
नर-नारियोंसे विभूपित है । वहके नर-नारियोंको किसी भी वातकी कमी नहीं है ।
वे हमेशा अमन-चेनसे अपना समय विताते हैं । वहाँसे लोग सदा काक विदेह
( मुक्त ) होते है । वहदोके पुण्य-पुरुष ध्यानामि और कठिन तपस्याके द्वारा
क्मे-ईघनका जला कर विदेह--समुक्ति--अवस्थाको माप्त हो जाते हैं ओर जान
पढ़ता है कि इसी छिए इस देशका नाम विदेह पढ़ा है ।
विदेह देशमें पृथ्वीका भूपण कुंदनपुर नाम एक सुन्दर नगर है। उसमें
जो उत्तम उत्तम पुरुप निवास करते हैं उनसे वह ऐसा जान पढ़ता है कि माना
घह इन्द्र आदि देवता-गणका निवास-स्थान अमरावती ही है । कंडनपुरके राजा
सिद्धार्थ थे । वे नाथवंशी थे। उनके सभी मनोरथ सफल थे--उन्हें किसी भी बातकी
कमी न थी । उनकी रानीका नाम प्रिशकादेवी था । वे नदीकी तुढना करती थीं।
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