पांडव - पुराण अथवा जैन महाभारत | Pandav-puran Athva Jain Mahabahrat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय । ही जिसमें तक-वितकंके द्वारा स्याद्वाद कथंचित मतका मंडन और दूसरे कपोल-कर्पत पिथ्या मतताका खंडन किया गया हो वह आश्षेपिनी कथा है। इसको कहने या सुननेसे ज्ञानका विकाश दोता है । और जिसमें रत्नचय ( सम्पग्दर्शन, सम्यग््ञान और सम्यकूचारित्र ? का ।निरुपण आंर पिथ्यात्व आदिका खंडन किया गया हो वह विश्लेपिनी कथा है । इन गुर्णोंकी खान कथाके कहने या सुननेसे युर्णोकी दद्धि होती है। विकथा--खोटी कथा--वह है जो मिधथ्यात्वियों--व्यास आदि श्रंठि ठोगों- की गढ़ी हुई कपाल-कट्पित बॉ तोसे भरी हुई हो । विकथाके कहने या सुननेसे पाप-दंघ आर पुण्य क्ञीण होता है । हर एक सरकथाके आरम्भ लिन सात अंगोंका होना अतीव उपयोगी और आवश्यक है थे ये है । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, तीथे, फल और प्रकृत । इसी नियमको छेकर यहीं सब कुछ लिखा गया है । अब इस पवित्र पुराणका आरम्भ किया जाता है। जम्द्द्वीप एक प्रसिद्ध और सुन्दर द्वीप है । वह सत्पुरुष॑का निवास और सम्पत्तिका खजाना है । उसमें भरत नाम एक पवित्र और मनोहर क्षेत्र है । चद भारती--सरस्त्रती--से विभूपित अतिश्य शोभावाला है। इसके छह खंड. है। उनमें एक आयंखंड हैं। वह धीरवीर ओर इन्द्र जेसी विभ्रूतिवाढे परोपकारी आय घुरु- पोंफा निवास है । वहाँके आये पुरुष अभयदान देनेवाले और धर्मात्मा हैं । आयेखंडमं विदेश नाम एक मनोहर देश दे। वह भी सुन्दर और उत्तम गुणोंसे युक्त नर-नारियोंसे विभूपित है । वहके नर-नारियोंको किसी भी वातकी कमी नहीं है । वे हमेशा अमन-चेनसे अपना समय विताते हैं । वहाँसे लोग सदा काक विदेह ( मुक्त ) होते है । वहदोके पुण्य-पुरुष ध्यानामि और कठिन तपस्याके द्वारा क्मे-ईघनका जला कर विदेह--समुक्ति--अवस्थाको माप्त हो जाते हैं ओर जान पढ़ता है कि इसी छिए इस देशका नाम विदेह पढ़ा है । विदेह देशमें पृथ्वीका भूपण कुंदनपुर नाम एक सुन्दर नगर है। उसमें जो उत्तम उत्तम पुरुप निवास करते हैं उनसे वह ऐसा जान पढ़ता है कि माना घह इन्द्र आदि देवता-गणका निवास-स्थान अमरावती ही है । कंडनपुरके राजा सिद्धार्थ थे । वे नाथवंशी थे। उनके सभी मनोरथ सफल थे--उन्हें किसी भी बातकी कमी न थी । उनकी रानीका नाम प्रिशकादेवी था । वे नदीकी तुढना करती थीं।




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