योगदर्शनम् | Yog Darshanam

Yog Darshanam by ठाकुरप्रसाद शर्मा - Thakurprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१४) योगदरीन यसनययययमगस्पन मा मरनपानससस्वरननपा * यह प्रमाणित कर दिया दे कि यंग योग ही सीधा पथ है परन्तु इसके अतिरिक्त भी इश्यरभाक्ति का 'मभ्यास, मणते आदि मंत्र का जप, प्राणायाम साधन, पब्चतन्मात्रा रूपी दिव्य विपयों में मन का लय-साधन करना, ज्योतिः्थादि भगवत्‌ रूप का ध्यान, मन की शुन्यता श्म्यास आर अपनी इच्छा भद् सार शुद्ध मूर्तियों में मन लगायकर ध्यान करने से भी शन शन अन्तः्करण एकाग्र दोजाता द; ार इस मकार एकांग्र होता झा निरुद्धपवस्था को माप करक जीव मुक्तिपद को पहुंच सक्ता दे । चाहे कोई किधर से ही चला योगशाख्र की बताई हुई एुकाग्र-मुमि से निरुद्ध-भूमि में पहुंचने का नाम ही साधन हे । योगशाख ने समाधि के दो भेद किये हैं; यया-सविकल्प समाधि व्ग्ौर नि्धिकस्प समाधि। साविकल्प समाधि में साधक का शन्त करण निरुद्ध होजाने से चह भगवत्‌ साक्षातुरार करने लगता है; परन्तु दर्शन करना तव बना रहता है अयीद्‌ समाधि की उस पूब्द अवस्था मे जीव को आत्म साल्तातकार तो होजाता हे, परन्तु ब्स| अवस्था में कुछ द्रेत का भेद बना रहता है। और नििकल्प समाधि वह कहाती है जहां मक्काति का पूर्ण रुपेण ही लोप होकर जीद 1 घ्रह्म की एकता स्थापन होजाय, अथीद्‌ उस समय एक अद्रित तीर सदचित्‌ आनन्द रूप परमात्मा के और कोई दूसरा भान न रद | ' यही योग मार्ग का केवल्य रूपी मुक्तिपद कहाता है, इस स्थान | ध्याकर वेदोक्त सब मत एक होजाते हैं; यही वेदान्त का सद्भाव दे, यही भक्तिमाग की पराभाक्ति हे, यदी और २ दर्शर की झ्रत्यन्त दुः्ख-निवृत्ति है, ओर यही वेदोक्त आत्म साक्ार कार है । इसी अवस्था में जीव के जीवत्व का नाश होजाता है




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