न्याय - प्रवेशिका | Nyay-praveshika

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Nyay-praveshika by पं राजाराम प्रोफ़ेसर - Pt. Rajaram Profesar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६. . न्यं[य-प्रवेधिकं यह अथ व्यज्जना से प्रतीत होता है । इसी तरइ किसी मरदषसनीय को परदीसा के मसंग में दूर के ढोछ पुद्दावनेकहना यह अर्थ देवा है कि तुम भूछे हुए हो वस्तुतः वह प्रदोसनीय नहीं है यह अर्थ व्यज्जना से प्रतीत होता है । व्यज्जना से प्रतीत होने वाढे अर्थ को ८्यूश्य अर्थ कहते हैं बोर शब्द वा वाक्य को व्यड्जक कहते हें । उपद्ास ओर कटाक्षों में प्रायः व्य्जक घाब्दों का मयोग होता दे ऋ ॥ इन चार प्रकार के अ्धों में से पायः दाक्य को लेकर ही हमारे व्यवहार होते हैं पर कहीं २ लक्ष्य गोण ओर व्यंग्य अ्थ भी छिये जाते हैं क्योंकि अर्थ का यद नियम है यत्परः घाव्द स दाब्दार्थ जिन तात्पर्य हे शब्द बोला गया दे वढ़ी उसका अर्थ दे । कोओं से दही बचाना यहां कौए थाब्द दही खाजाने बाले प्राणियों के तात्पर्य से बोला गया है इसलिए इसका वद्दी अथ है और गधा जहां सूखे के तात्पय से बोछा गया है वहां उसका वद्दी अ्थे है । चार बजे हैं पढ़ाई बन्द करन के अभिषाय से बोछा गया दे इसाए वही अर है ॥ पर यह स्परण रखना च दिये कि छक्षणा गोणी और व्यज्जना से अधे की म्रतीति पुराने व्यवहार के अनुसार ही दही है निडरवीर के लिए देर दाब्द का व्यवद्दार पढछे होता आता है तभी हम इस अथ में यह दाब्द बोलते हैं यदि पुराना व्यवहार न होता तो सुनेन वाछा हारे तात्पयं को कैसे जानता इसछिए इस अभिपाय से किसी को कोई शेर नहीं कह सकता के इन चार प्रकार की हचियों में कई गोणी को अलग न मान कर तीन दो बृत्तियां मानते हैं कक ब्यब्जना को सी अछग न मान कर शा आर लक्षणा दा दा मानव हू ॥




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