आर्य भाषा और संस्कृति | Aarya Bhasha Aur Sanskrit

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Aarya Bhasha Aur Sanskrit by पं ० रामकृष्ण शुल्क - Pn.Ramkrishan Shulk

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषातित्व शहर पा आई , 'सनमें यह विचार शाया' आदि उदादरणों में 'झाना” क्रिया, बक्‍्तोदिश्य संचलन-कम के सादश्य पर विभिन्न अवस्थाद्षों की अभिव्यक्ति स्वतंत्र रूप से कर रही है। इस प्रकार के प्रयोगों द्वास भापा झपने शब्द- दारिंद्रय की अवहेलना करती हुई झपने को बराबर समर्थ ब्फौर व्यापक, झधिक से अधिक भाव-व्यंजक, बनाए रखने की चेा करती है। संस्कृति के अधिक विकास के साथ तो उसकी यही प्रदनत्ति उसका गोरब बन जाती है ! भाषा में अलंकारों की व्याप्ति उसकी इसी सामध्य-प्रबूत्ति की सूचक है । इतना हो नहीं, उपयोग और व्यापकता को सापेश्तसा में यह जहाँ नई व्यापिनी आवश्यकताओं के लिए कुछ नए श्रयोगों को स्वीकृत करती हैं वहीं वह पुरानी और बहु- परित्यक्त आवश्यकताओं के वोघक अपने बहुत से शब्द- भार को हलका भी करती जाती है । यह भी उसका एक अ्रगत्तिनिर्देशक गुण दी है; अवशुण नहीं । कुछ तो 'झपने बोलनेवालों के जीवन-विस्तार के कारण, और छुछ दूसरी- दूसरी संस्कृतियों के साथ संयोग होने से, नई-नई अवश्य- कृताओओं का आगमन या सूजन हुआ करता है और उनकी नवीसता में बहुत-सी पिछली झावश्यक्तारँ जीणे॑ और




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