उपनिषदार्य्यभाष्य [भाग- 1] | Upnishdaryya Bhashya [Bhag - 1]
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.11 MB
कुल पष्ठ :
392
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूमिका - रे
लिये “* आय्थभाष्य ” का. निर्माण किया गया हैं, यथयपि इस झनर्थ को
सध्याचार्य्य तथा रामाघुजाचार््य जो द्वेत तथा विशिष्टाडेत के भाप्यकार: हैं
उन्होंने भी मिटाया हे तथापि सर्वात्मवाद के वाकयों में उक्त झाचाय्यों ने ाद्ध-
जर्तीय न्याय से कई पक स्थलों में सायावादियों के मत को ही झचलम्बन
किया है, इसलिये श्रावश्यकत्ता थी कि हम उक्त घाक्यों की सीमाँसा
के लिये इस भाष्य का निर्माण कर, भाप्य का प्रकार यह है कि “शावास्य-
मिदे सर्वे” से प्रारस्भ करके तैत्तिरीयोपनिपद च्हे ** अहमन्नमहन्नम-
हुमन्नें ” तक आठ उपनिपदों का पद पदा्थे सहित पूर्ण रीति यान
किया गया है । . *...- गे ः
' * इंदयोपनिषदू ” > “ इस ” इस उतीयान्त पद से मारम्भ किये
जाने के कारण इसका नाम - ” इंशोपनिषद् ” है; जिसके झथे यह हैं कि
यह सम्दूण जगत् इंश्वर से परिपूर्ण है, शरीर इसका दूसरा नाम '“'वाजसने-
योपनिषदू ” इसलिये है कि इसमें वाजसनेय संहिता यज्ञबेंद का ४०पां
. झष्याय उद्धुत किया गया है, केवल भेद इतना है कि “'हिरण्मयेन नि
इस मंत्र के उत्तराख में वेद में यह. पाठ है कि “ यो 5सावादित्ये पुरुषः
सोश्सावहम् ” तथा उपनिपट् में इसके स्थान में यद्द पाठ है कि * तत्व
पूपन्नपा इणु सत्यघर्मायद्टये ” और इससे आगे “ पूषन्नेकर्षे ”
यह्द पाठ लिखकर “' यो5सावसों पुरुषः सो$हमस्मि, ” यदद पाठ लिजा
है, इस घकार किस्विन्मान पाठ का मेद् है झर्थे मायः दोनों का पक ही है, शऔर
मंत्री के श्यागे पीछे:दोने का भी मेद है, झन्य कोई विशेष सेद न होने के कारण
इसको उक्त नाम से कथन किया गया है,.” बाजसनि ” नाम सूर्य्य श्ौर उससे
अध्ययन करने करे कारण चाजसनेय ”नाम याक्वरक् का हे याशवल्क्य द्वारा
इस्दकें छार्थों का प्रकाश किये जाने के कारण इस संहिता का नाम “वाजसनेथ”
है; पौराणिक प्रथाजुसार चाजसनैयसंहिता इसको इसलिये कहा जाता है कि
पक समय चेदव्यास का शिष्य बैपस्पायन याशयट्क्य पर मुख होकर कहनें खुगा -
कि हमारा पढ़ाया हुआ वेद त्याग दो, उसने . योगजसाम्थ्य से अध्ययन -. किये
'ुंप वेद का उदमन करदिया सऔर वेषस्पायन के शिष्यों ने तित्तर यनकर उसको _
जून लिया, इसलिये उसका नाम तैत्तिरीयू शायला चा्लां “ कुष्ण यज्लुचद ” पड़ा
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