पाश्चात्य आधुनिक दर्शन की समिशातामक व्याख्या | Paschatya Adhunik Darshan Ki Samishatamak Vyakhya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.84 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्र. से घटनाओ अथवा वस्तुओ से हमारा सम्पक॑ नही होता है । इसलिए साक्षात् रीति मे घटनाओ की हमे ऐसी सुचना नहीं मिलती है जिसे सत्य या असत्य ठहराया जा ससकें । इसलिए दार्यनिक प्रकथनो के विषय मे सत्यता यथा असत्यता का प्रइन नहीं उठाया जा सकता 1 यदि दर्शन को भाषी का तकंकषास्त्र या व्यापक व्याकरण माना जाय तो ग्रह ठीक दै कि इसमें सत्यता-असत्यतता नह्टी प्राप्त की जा सकती और इसलिए न तो वैज्ञानिक ज्ञान ही । पर कया वैज्ञानिक ज्ञान मे केवल ऐन्द्रिय प्रदत्त (0918) या सामग्रियाँ ही पायी जाती हैं ? कम-से-कम किसी भी विज्ञान मे वाक्य-रचना के नियम वाक्यों के सूयपान्तर करने की विधियाँ वावयो की सदलेषण-विधियाँं इत्यादि पायी जाती है। इन नियमों और विधियों के आधार पर सामग्रियों का तो नही पर इन सामग्रियों को व्यवस्थित कर इनके सम्बन्ध मे ज्ञान प्राप्त किया जाता है। उसी प्रकार गाणितीय भाषा और उसके नियम है। गणितीय भाषा का भी साक्षात् सम्बन्ध घटनाओं से नहीं होता पर किसी भी आनुभविक विज्ञान में इसे काम मे लाकर वैज्ञानिक नियम को परिशुद्ध (16056) भाषा मे व्यक्त किया जा सकता है । इसलिए यद्यपि ददषंन में सामग्रियों का ज्ञान नही पाया जाता तथापि इसके द्वारा भापषा-सुधार किया जा सकता है ताकि इसके द्वारा विचार-विनियम या विचारों का आदान-प्रदान बिना किसी गडवडी दोप या गडवड-घोटाले के हो । दद्ष॑न का यह उद्देक्य भी कम महत्त्व नहीं रखता क्योकि यदि वास्तव मे भाषा परिशुद्ध हो जाय तो विचारों का आदान-प्रदान ऐसा हो सकता है कि आपस का मतमेद बहुत दूर तक मिट जाय । शायद धर्म- सम्वन्धी भेद विशेषतया कल्पना-रजित भाषा उपमा प्रतीक इत्यादि के व्यवहारो से हो गया है । यदि धर्म-भापा को लोग समझने लगें और उस भाषा को परिशुद्ध कर पायें तो सभव है कि धर्म के नाम पर लगाये जानेवाले अनेक नारे फीके पड जायें और पारस्परिक मेल में योगदान प्राप्त हो जाय । तत्त्वमीमासा के सम्बन्ध में विचार उपयुक्त जो बातें दर्शन और तत््व-मीमासा के सम्बन्ध मे कही गयी हैं वे समसामधिक भनुभववाद से सम्बन्ध रखती है । अब अनुभववाद समसामयिक बविचार- घारा में प्रमुख स्थान अवदय रखता है पर अस्तित्ववाद (छा लावि8180) भी कम प्रभावशाली नही है । यदि अनुभववादी मत के अनुसार तत्व-मीमासा मर्थद्दीन कही जा सकती है तो अस्तित्ववाद के अनुसार तत्त्व-मीमासा ही दर्शन का वास्तविक रूप है। मोटे तौर पर अस्तित्ववाद के अनुसार कहा जा सकता है कि प्रत्येक व्यक्ति सस्वतत्र है कि वह अपने व्यक्तित्व का सच्चा विकास स्वय अपने का्यं-निणंयो के आधार पर करे । जो व्यक्ति दूसरे की नकल करता या बिना अपनी स्वतन्न
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