पद्म पुराण भाग 3 (1959) | Padma Puran-vol-iii(1959)

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Padma Puran-vol-iii(1959) by पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषबाजुक्रमणिका इक्यासीवाँ पर्व झयोध्यामे पुत्र विरहातुरा कौशल्या निरन्तर दुःखी रहती है । पुत्रके सुकुमार शरीरकों बनवासके समय झनेक कष्ट होने लगे यह विचार कर वह विल्ञाप करने लगती है। उसी समय श्राकाशसे उतरकर नारद उसके पास नाते हैं तथा विलापका कारण पूछते हैं । कोशल्या सब्र कारण बताती है श्रौर नारद शोकनिमग्न हो राम-लदमण तथा सीताका कुशल समा- चार लानेके छिए चल॒ पढ़ते हैं । नारद लंकामें पहुँचकर उनके समीप कौशल्या श्रौर सुमित्राके दुःखका वणन करते हैं । माताओंके दुम्खका श्रवण कर राम-लदमण श्रयोध्या की भोर चलनेके लिए. उद्यत होते हैं पर विमीषण चरणोंमें मस्तक शुकाकर सोलइ दिन तक ठददरनेको प्रायना करता है । राम जिस किसी तरह विभीषणुकी प्रार्थना स्वीकृत कर लेते हैं । इस बोचमें विमीषण विद्याघर कारीगरोंको मेजकर श्रयोधापुरीका नव-निर्माण कराता है । भरपूर रत्नॉकी वर्षा करता है श्रौर विद्याचर दूत मेजकर राम-लदयमणकी कुशल वार्ता भरतके पास मेजता है । १०६-११७ व्यासीवाँ पे सोलइ दिन बाद रामने पुष्पक विमानमें श्रारूढ़ हो सूर्योदयके समय श्रयोध्याके लिए प्रत्थान किया । राम मार्गमें श्रागत विशिष्ट-विशिष्ट स्थानोंका सीताके लिए परिचय देते जाते थे । श्रयोध्याके समीप आनेपर भरत श्रादिने बड़े हष॑के साथ उनका स्वागत किया । शयोध्या वासी नर-नास्योंकि उल्लासका पार नहीं रहा । राम लदमणके साथ सुप्रीव इनुमान्‌ विभीषण भामरडल तथा बिराधित भादि भी श्राये थे । लोग एक-दूसरेको उनका परिचय दे रदे थे । कौशल्या आदि चारों माताओंने राम-लदमणका श्राज्ञिज्जन किया । पुत्रोंने माताश्रोंको प्रणाम किया ) ११८-१२२ तेरासीबाँ पत्र राम लदमणकी विभूतिका बर्णन । भग्त यद्यपि डेढ़ सौ छ्ित्रों के स्वामी थे -मागोपभोगसे परिपूर्ण सुन्दर मददलोंमें उनका निवास था तथापि संसारसे सदा विरक्त रहते थे । वे राम-वनवास- के पूव ही दीक्षा लेना चाहते थे पर ले न सकने । अब्र उनका बैराग्य प्रकृष्ट सीमाको प्राप्त हो गया । संसारमें फेंसानेवाली प्रत्येक वस्तुसे उन्हें निवेद उत्पन्न हो गया । राम- लददंमणने बहुत रोका । केकया बहुत रोई चीसी परन्तु उनपर किसीका प्रभाव नहीं हुआ | राम-लचदमण श्र भरतकी ख़ियोंने राग-रज्जमें फँसाकर रोकना चाहा पर सफल नहीं दो सकीं । इसी बीचमें त्रिलोकमरडन हाथीने बिगड़ कर नगरमें उपद्रव किया । प्रयत्न करने पर भी शान्त नहीं हुआ श्रन्तमें भरतके दर्शन कर वह शान्त दो जाता है । १२३-१३२ चोरासीवाँ पे ब्रिल्लोकमण्डन हाथीको राम लददमण बश कर लेते हैं । सीता श्रौर विशल्याके साथ उस गजराब पर सवार हो भरत राजमहलमें प्रवेश करते हैं । उसके लुभित होनेसे नगरमें जा ्षोम कै गया था. बह दूर हो जाता है। चार दिन बाद महावत आकर राम-लदमणके सामने ब्रिललोकमणडन दाथीकी दुश्खमय शवस्थाका वर्णन करते हैं वे कहते हैं कि हाथी चार दिनसे कुछ नहीं खा-पी रहा है श्रौर दुःख भरी साँसें छोड़ता रदता है । १३३-१३४.




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