भारतीय मूर्ति - कला | Bhartiye murti kala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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केडा--असं० देखिए प० २६ नोट १. कारना -क्रिं० चारों ओर से गढ़ना कि मूत्ति बेलाग हो जाय । खंडदर--सं० किसी कृति में व्यर्थ खाली छूटी जगह जिसके कारण कृति झरम्य लगें | गेोसूचिका--सं० इस आकृति की---बेल । वैल जब चलता रहता दे तो उसके मूत्र का चिह्न उक्त आकार का पढ़ता है | वैल-मृतनी चरद-मुत्तान | गोला-गलता--सं० (गोला + गलता) ये दोनों इमारती साज हैं। गोला उभार में दत्त का काई झंश। गलता उसका ठीक उलटा श्रथात्‌ गोलाई में घँसा हुआ । दोनों मिले हुए गोला- गलता कहे जाते हैं | चोसल्ञा--सं० इमारत की नीव में सबसे नीचे दिए गए शहतीर कि इमारत घेंसे नहीं जैसे आज गिट्टी कूटते हैं । छुकन--सं० इमारत का बह विमाजन जा घरातल के बराबर रहता है श्ौर जिस पर इमारत उमरती है ( लै-झाउट ) । इसके नकशे को पड़ा-नकशा ( प्राउन्ड प्लेन ) कहते हैं । ज्यामितिक झाकति--सं० सरल रेखाओं कोणों बृत्तों श्रौर ब्त्तांशों से बना अलंकरण | शभोकदार--विं० सुख्यत छुज्जे के लिये जो समरेखा से नोचे की ओर भुका हो और उस रेखा से १८० से ३६० के भीतर के केण बनाता दो | डॉल--सं मूर्ति झादि में झावश्यकतानुसार उभार वा दबाव । डौलियाना--क्ि० ( डौल से ) दे० प्र० २ नोट २. तमंचा--सं० चौखट के अगल बगल के पत्थर | तरह--सं० रचना-प्रकार झालंकारिक अंकन (डिज्ञाइन) |




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