भारतीय इतिहास एक दृष्टि | Bhartiya Itihas Ek Drishti
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38.69 MB
कुल पष्ठ :
740
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एंच० जी० वैल्सके अनुसार वह काछ ८० करोडसे ४० करोड़ वर्प पूर्व तक
रहा प्रतोत होता है । इस कालके प्रारम्भमे सम्पूर्ण पुथ्वो प्रायः एक रूप
थी, उसमें भारत, युरंप, भफ्रोका, अमेरिका आदि जैसी भौगोलिक इकाइयोँ
न बन पायी थी । किन्तु यह अनुमान किया जाता है कि भारतके हिमवान
प्रदेश तथा दक्षिणी पठारकी रूपरेखा भूतात्विक इतिहासके प्रारम्भमें ही
बन गयी थो । वस्तुतः हिमाल्यसे कन्याकुमारी पर्यन्त सम्पूर्ण वर्तमान
भारतके ढाँचेका मूलाधार भी बन गया था । इस प्रकार भारतवर्पका मूल
चट्टानी आधार वसुन्घराके ज्ञात जीवनमे प्रारस्भसे ही अवस्वित था ।
निर्जीव युगके उपरान्त जीव युगका प्रारम्भ होता है। इसके तीन
खण्ड है--पहुला काल--पुरातन जीवयुग ( पेलेजोइक ), दूसरा काछ--
मध्यजीव युग (मेसेजोइक) और तीसरा काल--नव्यजीव युग (केनेजो इक) ।
यह पहला काल डॉ० हेडेनके अनुसार ४० से ३० करोड़ और वेट्सके अनु-
सार ३० से १५ करोड़ वर्ष पर्यन्त चला । इसी काछमे सर्व प्रथम घरातल-
पर वनस्पतियों और जोव-जन्तुशओंके अ पने सरलतम प्रारस्भिक रूपोंमे उदय
होनेका अनुमान किया जाता हैँ, जिनसे ही शने.-शने: जलचर, नभचर एवं
थन्चर प्राणियोका तथा जलोय एवं स्थलीय वनस्पतियोका विकास हुआ ।
इस कालमे भूतलकी रूपरेखा भी वर्तमानसे नितान्त भिन्न थी । दूसरे
कालमे पृथ्वाने वड़ो ऐंठ-मरोड़ दिखायी, भूतलमे बड़े-बड़े परिवर्तन हुए,
जल-थल विभाजनमे अन्तर पड़े । इस युगमे पृथ्वीकी भौगोलिक स्थिति
बहुत करके जैन शास्त्रोमे वर्णित “अढाई ट्वीप-मनुष्य लोक के सदूदश थी,
अर्थात् उत्तरीय घ्रूवको केन्द्र लेकर उलटे कटोरे-जैसा एक अविच्छिन्न
भूखण्ड था जिसे चारो ओरसे मेखछाकी नाई एक वृत्ताकार महासागर घेरे
हुए था । तत्परचात् फ़िर एक सेखलाकार अविच्छिन्त भूखण्ड था--दक्षिणी
भारतके कुछ भाग, अफ्रीका, दक्षिणों अमरीका, आस्ट्रेलिया आदिकों
संयुक्त करता हुआ । उसके नोचें फिर एक वृत्ताकार महासमुद्र और
मन्तमे दक्षिणी श्रूव पर्यन्त ऊपर जेसा एक अन्य भूखण्ड था । यह काल १५
प्रागतिहासिक काल' 9३,
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