भारतीय इतिहास एक दृष्टि | Bhartiya Itihas Ek Drishti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : भारतीय इतिहास एक दृष्टि  - Bhartiya Itihas Ek Drishti

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ज्योति प्रसाद जैन - Jyoti Prasad Jain

Add Infomation AboutJyoti Prasad Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
एंच० जी० वैल्सके अनुसार वह काछ ८० करोडसे ४० करोड़ वर्प पूर्व तक रहा प्रतोत होता है । इस कालके प्रारम्भमे सम्पूर्ण पुथ्वो प्रायः एक रूप थी, उसमें भारत, युरंप, भफ्रोका, अमेरिका आदि जैसी भौगोलिक इकाइयोँ न बन पायी थी । किन्तु यह अनुमान किया जाता है कि भारतके हिमवान प्रदेश तथा दक्षिणी पठारकी रूपरेखा भूतात्विक इतिहासके प्रारम्भमें ही बन गयी थो । वस्तुतः हिमाल्यसे कन्याकुमारी पर्यन्त सम्पूर्ण वर्तमान भारतके ढाँचेका मूलाधार भी बन गया था । इस प्रकार भारतवर्पका मूल चट्टानी आधार वसुन्घराके ज्ञात जीवनमे प्रारस्भसे ही अवस्वित था । निर्जीव युगके उपरान्त जीव युगका प्रारम्भ होता है। इसके तीन खण्ड है--पहुला काल--पुरातन जीवयुग ( पेलेजोइक ), दूसरा काछ-- मध्यजीव युग (मेसेजोइक) और तीसरा काल--नव्यजीव युग (केनेजो इक) । यह पहला काल डॉ० हेडेनके अनुसार ४० से ३० करोड़ और वेट्सके अनु- सार ३० से १५ करोड़ वर्ष पर्यन्त चला । इसी काछमे सर्व प्रथम घरातल- पर वनस्पतियों और जोव-जन्तुशओंके अ पने सरलतम प्रारस्भिक रूपोंमे उदय होनेका अनुमान किया जाता हैँ, जिनसे ही शने.-शने: जलचर, नभचर एवं थन्चर प्राणियोका तथा जलोय एवं स्थलीय वनस्पतियोका विकास हुआ । इस कालमे भूतलकी रूपरेखा भी वर्तमानसे नितान्त भिन्न थी । दूसरे कालमे पृथ्वाने वड़ो ऐंठ-मरोड़ दिखायी, भूतलमे बड़े-बड़े परिवर्तन हुए, जल-थल विभाजनमे अन्तर पड़े । इस युगमे पृथ्वीकी भौगोलिक स्थिति बहुत करके जैन शास्त्रोमे वर्णित “अढाई ट्वीप-मनुष्य लोक के सदूदश थी, अर्थात्‌ उत्तरीय घ्रूवको केन्द्र लेकर उलटे कटोरे-जैसा एक अविच्छिन्न भूखण्ड था जिसे चारो ओरसे मेखछाकी नाई एक वृत्ताकार महासागर घेरे हुए था । तत्परचात्‌ फ़िर एक सेखलाकार अविच्छिन्त भूखण्ड था--दक्षिणी भारतके कुछ भाग, अफ्रीका, दक्षिणों अमरीका, आस्ट्रेलिया आदिकों संयुक्त करता हुआ । उसके नोचें फिर एक वृत्ताकार महासमुद्र और मन्तमे दक्षिणी श्रूव पर्यन्त ऊपर जेसा एक अन्य भूखण्ड था । यह काल १५ प्रागतिहासिक काल' 9३,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now