भारतीय इतिहास एक दृष्टि | Bhartiya Itihas Ek Drishti

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Bhartiya Itihas Ek Drishti by ज्योति प्रसाद जैन - Jyoti Prasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एंच० जी० वैल्सके अनुसार वह काछ ८० करोडसे ४० करोड़ वर्प पूर्व तक रहा प्रतोत होता है । इस कालके प्रारम्भमे सम्पूर्ण पुथ्वो प्रायः एक रूप थी, उसमें भारत, युरंप, भफ्रोका, अमेरिका आदि जैसी भौगोलिक इकाइयोँ न बन पायी थी । किन्तु यह अनुमान किया जाता है कि भारतके हिमवान प्रदेश तथा दक्षिणी पठारकी रूपरेखा भूतात्विक इतिहासके प्रारम्भमें ही बन गयी थो । वस्तुतः हिमाल्यसे कन्याकुमारी पर्यन्त सम्पूर्ण वर्तमान भारतके ढाँचेका मूलाधार भी बन गया था । इस प्रकार भारतवर्पका मूल चट्टानी आधार वसुन्घराके ज्ञात जीवनमे प्रारस्भसे ही अवस्वित था । निर्जीव युगके उपरान्त जीव युगका प्रारम्भ होता है। इसके तीन खण्ड है--पहुला काल--पुरातन जीवयुग ( पेलेजोइक ), दूसरा काछ-- मध्यजीव युग (मेसेजोइक) और तीसरा काल--नव्यजीव युग (केनेजो इक) । यह पहला काल डॉ० हेडेनके अनुसार ४० से ३० करोड़ और वेट्सके अनु- सार ३० से १५ करोड़ वर्ष पर्यन्त चला । इसी काछमे सर्व प्रथम घरातल- पर वनस्पतियों और जोव-जन्तुशओंके अ पने सरलतम प्रारस्भिक रूपोंमे उदय होनेका अनुमान किया जाता हैँ, जिनसे ही शने.-शने: जलचर, नभचर एवं थन्चर प्राणियोका तथा जलोय एवं स्थलीय वनस्पतियोका विकास हुआ । इस कालमे भूतलकी रूपरेखा भी वर्तमानसे नितान्त भिन्न थी । दूसरे कालमे पृथ्वाने वड़ो ऐंठ-मरोड़ दिखायी, भूतलमे बड़े-बड़े परिवर्तन हुए, जल-थल विभाजनमे अन्तर पड़े । इस युगमे पृथ्वीकी भौगोलिक स्थिति बहुत करके जैन शास्त्रोमे वर्णित “अढाई ट्वीप-मनुष्य लोक के सदूदश थी, अर्थात्‌ उत्तरीय घ्रूवको केन्द्र लेकर उलटे कटोरे-जैसा एक अविच्छिन्न भूखण्ड था जिसे चारो ओरसे मेखछाकी नाई एक वृत्ताकार महासागर घेरे हुए था । तत्परचात्‌ फ़िर एक सेखलाकार अविच्छिन्त भूखण्ड था--दक्षिणी भारतके कुछ भाग, अफ्रीका, दक्षिणों अमरीका, आस्ट्रेलिया आदिकों संयुक्त करता हुआ । उसके नोचें फिर एक वृत्ताकार महासमुद्र और मन्तमे दक्षिणी श्रूव पर्यन्त ऊपर जेसा एक अन्य भूखण्ड था । यह काल १५ प्रागतिहासिक काल' 9३,




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